Monday 23 January 2012

NEW BUDDHISM means NAVAYAN--1956

नवायान 
' नवायान ' इस  शब्द का विश्व में १३ अक्टोबर १९५६ को नागपुर की धरती पर पहली बार उच्चारण किया गया. और उन्होंने आगे कहा -- ' नवायान यह हीनयान नहीं और महायान नहीं .' और उसके दो महीने के  बाद उस महामानव भारतरत्न बाबासाहेब आंबेडकर (father of Indian Constitution) का  महापरिनिर्वाण 
६ दिसम्बर १९५६ को दिल्ली में हो गया. 
नवायान क्या है, उसकी व्याख्या क्या है , उसका तत्वज्ञान क्या है किसीको पता नहीं.
विश्व  के किसी भी शब्दकोश में ' नवायान ' शब्द नहीं है. 
लेकिन,  लेखक अनिल कुमार पंचभाई ने अपनी पुस्तक ' नवायान ' क्या है?  इसे समजाने का एक सफल प्रयास किया है. यह पुस्तक विजयादशमी के दिन २ अक्तूबर २००६ को सुगत बुक डेपो, नागपुर- ४४००१७ से प्रकाशित की गई. 
' नवायान ' देखने के पूर्व हमें हीनयान और महायान क्या है समजने के लिए संक्षिप्त में  देखना होगा.
हीनयान - ( स्थविरवाद )
' हीनयान ' को समजने के लिए उसके ' तिन पीटक ' याने ' त्रिपिटक '-- बुद्ध के वचन संग्रह पढ़ना चाहिए.
गौतम बुध्द के वचन ' पाली ' भाषा में है. 
गौतम बुद्ध के वचन --(१) विनय  पिटक, (२) सुत्त  पिटक  और (३) अभिधम्म  पिटक.  इसे तिन भागो में विभाजित किया है. इसलिए इसे त्रिपिटक कहते है. 
विनय  पिटक के पांच भाग है :--
                  (१) महावग्ग, (२) चुलवग्ग, (३) पाराजिक, (४) पाचितिय  और (५) परिवार.
सुत्तपिटक के पांच भाग है जिसे निकाय कहते है :-
                  (१) दीघनिकाय, (२) मज्जिम निकाय, (३) संयुक्त निकाय, (४)  अंगुत्तर निकाय, और 
                  (५) खुद्दक निकाय. 
                   दीघनिकाय में ३४ सुत्त है.
                   मज्जिम निकाय में १५२ सुत्त है.

                   संयुक्त निकाय में ७७६२ सुत्त है. और
                   अंगुत्तर निकाय में ९५५७ सुत्त है.

खुद्दक निकाय के पंधरा ग्रन्थ हैं:- (१) खुद्दक पाठ, (२) धम्मपद, (३) उदान, (४) इत्तिवुत्तक, 
                   (५) सुत्तनिपात, (६) विमान-वत्थु, (७) पेतवत्थु, (८) थेरगाथा, (९) थेरीगाथा, (१०) जातक, 
                   (११) निद्देस, (१२) पटिसंम्भिदामग्ग, (१३) अपदान, (१४) बुद्धवंस और (१५) चरियापिटक.
अभिधम्मपिटक के सात भाग है:-- 
                    (१) धम्मसंगिणी, (२) विभंग, (३) धातुकथा, (४) पुग्ग्ल पन्यति, (५) कथावत्थु, (६) यमक और 
                     (७) पटठान.
महायान 
महायान के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है. 
महायान के नौ ग्रन्थ है :- (१) लंकावतार-सूत्र, (२) अष्टसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता, (३) सध्दर्मपुण्डरिक,
                      (४) ललित-विस्तार, (५) सुवर्णप्रभास, (६) गण्डव्यूह, (७) तथागतगुह्यक, (८) समाधिराज और 
                       (९) दशभूमिश्वर.
हीनयान, महायान, वज्रयान, मंत्रयान, तंत्रयान, सहजयान ये सभी बुध्द के अंग-नामरूप जैसे है. इसमें से  किसी एक को बुध्द या बुध्द का उपदेश-तत्वज्ञान समजना गलत होगा.
बुध्द हमेशा अन्धो  का एक  उदाहरण दिया करते थे --- एक गांव में कुछ अंधे हाथी को देखने आये, एक ने पीठ को स्पर्श करते हुए कहा ' ये हाथी है', दुसरे ने पैर को छू कर कहा 'ये हाथी है', तीसरे ने सूंड को छू कर कहा 'ये हाथी है', चोथे ने कान को छू कर  कहा 'ये हाथी है', पाँचवे ने दुम छू कर कहा 'ये हाथी है '. इस तरह वे अंधे आपस में बात कर रहे थे. उसी समय वंहा पर  एक आँखवाला आया और उस आँखवाले ने उन अंधों को कहा ये   हाथी के अंग पीठ, पैर, कान, सूंड, दुम  है, ये हाथी का एक-एक अवयव है, ये सब मिलाकर एक सम्पूर्ण हाथी होता है.
इसी अन्धो की तरह विश्व के अज्ञानी लोग  बुध्द के अलग-अलग उपदेश-तत्वज्ञान-मार्ग  को ही बुध्द (हाथी) समज बैठे है.इसी कारण विश्व के हीनयान  बौध्द और महायान बौध्द और उनके राष्ट्रों में भाईचारा FRATERNITY नहीं है, जो भविष्य में BUDDHISM के लिए एक महान खतरा है. विश्व के बौध्द राष्ट्रों का एक COMMON PLATFORM नहीं है. चीन में BUDDHISM  कैद है. रशिया में BUDDHISM की हालत खस्ता है. भारत में BUDDHISM का  पौधा अभी जड़े मजबूत करने में बहुत मेहनत कर रहा है क्योंकि भारत में पुराने BUDDHISM के अनेक दुश्मन है.
पुराना खिचड़ी पकाया  BUDDHISM भारत को बौध्दमय नहीं बना सकता.
इसलिए डॉ. आंबेडकर को १३ आक्टोबर १९५६ को नागपुर में CONVERSION करने के एक दिन पहले कहना पड़ा ' ये मेरा ' नवायान ' है .       
बौध्द धम्म की आधारशिला क्या है?
इस प्रश्न पर की बौध्द धम्म की आधारशिला क्या है, कुछ मतभेद रहा है.
क्या अकेली करुणा बौध्द धम्म की आधारशिला है?
क्या अकेली प्रज्ञा बौध्द धम्म की आधारशिला है?
इस मतभेद के कारण बुध्द के अनुयायी दो पक्षों में विभक्त हो गए थे.
एक पक्ष का मत था की अकेली करुणा ही बौध्द धम्म की आधारशिला है. दुसरे पक्ष का कहना था की अकेली प्रज्ञा ही बौध्द धम्म की आधारशिला है.
ये दोनों पक्ष आज भी विभक्त हैं. 
यदि ' बुध्द-वचनों ' को लेकर विचार किया जाये तो दोनों पक्ष गलत प्रतीत होते है.
इसमें कोई मतभेद नहीं है कि बुध्द धम्म के दो स्तंभों में से एक ' प्रज्ञा ' है. 
प्रश्न यही है कि ' करुणा ' भी दूसरा स्तम्भ है वा नहीं. 
करुणा
करुणा भी बुध्द के धम्म का एक स्तम्भ है-- यह विवाद से परे कि बात है. इसके समर्थन में बुध्द-वचन उद्धृत किया जा सकता है.-- ( देखो पुतिगत्त-तिस्स क़ी कथा ( धम्मपदट्ट कथा )
पुराने समय में गंधार देश में एक बहुत ही भयानक बीमारी से पीड़ित कोई साधू था. वह जंहा कंही बैठता, उसी जगह को गन्दा कर देता. वह एक ऐसे विहार में था, जंहा कोई उसकी सहायता न करता था. वह स्थान इतना दुर्गन्धपूर्ण था कि सभी भिक्षुओं को उस साधू से भी घृणा हो गई. लेकिन बुध्द ने शुक्रदेव नामक भिक्षु से पानी आदि डलवाकर उस रोगी को अपने हाथ से स्नान कराया और उसकी सेवा क़ी.-----जितने भी वंहा एकत्रित हुए थे, उन सभी को आश्चर्य हुआ, इसलिए उन्होंने पुछा कि इतने ऊँचे होकर आपने इतना सामान्य काम क्यों किया?.  बुध्द (तथागत) ने समजाया----
" संसार में आने का तथागत का उद्देश ही यह है कि दरिद्रों, असहायों, और आरक्षितो का मित्र बनना. जो रोगी हों ----श्रमण हों वा दुसरे कोई भी हों-- उनकी सेवा करना. दरिद्रों, अनाथो, और बूढों की सहायता करना तथा दूसरों को ऐसी करने की प्रेरणा देना ".  
प्रज्ञा 
ब्राह्मण विद्या को ही बहुत बड़ी बात समजते थे. आदमी चाहे शीलवान हो और चाहे न हो किन्तु यदि वह विद्वान है, तो उनकी दृष्टी में वह पूज्य था.उन्होंने कहा है की राजा तो अपने देश में ही पूजा जाता है किन्तु विद्वान सर्वत्र पूजित होता है, इसका मतलब था की विद्वान राजा से बढ़कर है.
तथागत ( बुध्द) ने प्रज्ञा को विद्या से भिन्न माना है. 
(देखिये-अंगुत्तर निकाय - वस्सकार सुत्त- चतुक्क निपात )  
--------जिस आदमी में ये चार गुण है, उसे ही मै प्रज्ञावान समजता हूँ. एक आदमी बहुत जनों के हित के लिए
            होता है, बहुत जनों के कल्याण के लिए होता है. उसके कारण बहुत से आदमी सुन्दर, हितकर
            अष्टांगमार्ग के अनुगामी है.
            (१) वह जिस विषय में मन को लगता है, उस विषय में वह मन को लगा सकता है; जिस विषय में मन
                 को नहीं लगाना चाहता उस विषय में वह मन को उधर जाने से रोक सकता है.
            (२) जिस संकल्प  को वह मन में उत्पन्न होने देना चाहता है, उस संकल्प को मन में उत्पन्न होने
                  देता है, जिस संकल्प को मन में उत्पन्न होने नहीं देना चाहता उस संकल्प को मन में उत्पन्न होने
                  नहीं देता. इस प्रकार उसे अपने विचारों पर अधिकार होता है.
            (३) वह जब चाहे बिना कठिनाई के, बिना तकलीफ के चारो लोकोत्तर ध्यानों को प्राप्त कर सकता है,
                 जो इसी जीवन में सुख-विहार के लिए है.
            (४) वह इसी जन्म में आस्त्रवों का क्षय कर,  आस्त्रव -क्षय ज्ञान को प्राप्त हो, चित्त की विमुक्ति को
                 प्राप्त करता है, प्रज्ञा द्वारा विमुक्ति को प्राप्त कर वह इसमें विहार करता है.    
प्रज्ञा आदमी के हाथ की दुधारी तलवार है. 
शीलवान आदमी के हाथ में होने पर यह खतरे में पड़े हुए किसी आदमी की रक्षा कर सकती है.
लेकिन शील-रहित आदमी के हाथ में होने पर यह किसी की हत्या भी करा सकती है.
इसलिए प्रज्ञा से भी शील का अधिक महत्व है.
प्रज्ञा विचार-धर्म है, सम्यक विचार करना . शील आचार-धर्म है, सम्यक आचरण करना.  
नवायान
नवायान यह ईश्वर, परमेश्वर और अल्लाह-खुदा के तत्वज्ञान में विश्वास नहीं रखता.  
नवायान यह धर्म, रीलिजन और मजहब नहीं है. 
धर्म, रीलिजन और मजहब अपने-अपने ईश्वर, परमेश्वर और अल्लाह-खुदा में विश्वास रखते हैं.

नवायान याने :--
* MUST BREAK DOWN ALL THE BARRIERS BETWEEN MAN AND MAN.
* MUST TEACH THAT WORTH AND NOT BIRTH IS THE MEASURE OF MAN.
* MUST PROMOTE EQUALITY BETWEEN MAN AND MAN.
* THAT THOUGH OTHERS MAY NOT LEAD THE HIGHER LIFE, YOU WILL.
* THAT THOUGH OTHERS MAY LIE, TRADUCE, DENOUNCE. OR PRATTLE, 
   YOU WILL NOT.
* THAT OTHERS MAY BE COVETOUS, YOU WILL NOT.
DO GOOD, BE NOT PARTY TO EVIL AND COMMIT NO SIN.
* TO CLEANSE THE MIND OF IMPURITIES.
* TO MAKE THE WORLD A KINGDOM OF RIGHTEOUSNESS.                     
भारत में नवायान की स्थापना करने के पूर्व भारत में मुख्यतः आर्य धर्म, हिन्दू धर्म, जैन धर्म, ईसाई रीलिजन, इस्लाम मजहब और सिख-पंथ प्रचलित थे. जो ईश्वर, परमेश्वर और अल्लाह-खुदा को ही अपने जीवन का जन्म से लेकर मृत्यु तक की सब घटनाओं के लिए जिम्मेदार समजते थे. उनकी नजर में इंसानों  (औरत और आदमी) की कोई किमंत नहीं थी. इसी तत्वज्ञान के अंतर्गत दो हजार वर्षों से आदमी गुलाम बन कर रह गया. 
इसी तत्वज्ञान के कारण विश्व और भारत के लोगों ने  (१) स्वतंत्रता, (२)  समता, (३) न्याय  और (४) भाईचारा के मुलभुत अधिकारों को दफना दिया था.
भारत में बौध्द धम्म का नामोनिशान मिट गया था. और विश्व  में कंही जो बौध्द धम्म है उसमें उनके प्रचलित धर्म की खिचड़ी पकाई गई है. 
विश्व के बौध्द धर्म में ईश्वर, देवी-देवताओं और कर्म-काण्डों-पूजा-अर्चना की खिचड़ी पकाई गई है.  इस तरह विश्व में बौध्द धर्म मिलावटी है. 
बुद्ध ने ईश्वर-तत्वज्ञान के धर्म को अधर्म और अज्ञान कहा.
(देखिये--चुलवग्ग-६ :२. --विनय पीटक )
विश्व के संपूर्ण मानव समाज को अपनी समस्याओं को GOD -ईश्वर के सामने नतमस्तक होकर, जब बाबासाहेब आंबेडकर ने देखा तो उन्होंने इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए जो औषधि-तत्वज्ञान दी है,  उसी का नाम नवायान है. 
" धर्म के भविष्य " के  बारे में बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा:-- 
( देखिये--डॉ. आंबेडकर का लेख- बुध्द और उनके धम्म का भविष्य --१९५० )
१. " समाज को अपनी एकता को बनाये रखने के लिए या तो कानून का बंधन स्वीकारना ओअदेगा या फिर नैतिकता का. दोने के अभाव में समाज निश्चय ही टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा. सभी प्रकार के समाज में कानून की भूमिका अत्यल्प होती है. उसका उद्देश्य होता है ( कानून तोड्नेवालो ) अल्पसंख्यकों को सामाजिक अनुशासन  की सीमा में रखना. बहुसंख्यकों कों मात्र अपना सामाजिक जीवन बिताने के लिए नैतिकता के  प्रामान्य और अधिकार पर छोड़ दिया जाता है, नहीं छोड़ना ही पड़ता है. इसलिए धर्म को नैतिकता के अर्थ में प्रत्येक समाज के अनुशासन का तत्व बने रहना चाहिए.
२. " धर्म की उपर्युक्त परिभाषा विज्ञान के अनुकूल होनी चाहिए. यदि धर्म विज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तो वह अपने महत्व को खो कर हंसी और मजाक का विषय बन सकता है और जिवानुशासन के तत्व-रूप में न केवल वह अपनी शक्ति खो बैठता है, बल्कि समय के साथ विछिन्न होकर समाज से लुप्त भी हो सकता है. दुसरे शब्दों में, धर्म को अगर वास्तव में कार्यशील होना है, तो उसे तर्क और विवेक पर आधारित होना चाहिए. इसका ही दूसरा नाम विज्ञान है.
३. " सामाजिक नैतिकता की संहिता के रूप में ठहरने के लिए धर्म को चाहिए कि वह समता, स्वतंत्रता और बंधुता के बुनयादी तत्वों को मान्य करें. समाज जीवन के इन तिन तत्वों का स्वीकार किये बगैर कोई भी धर्म जिन्दा नहीं रह सकता. 
४. " धर्म ने निर्धनता को पवित्रता नहीं बक्शनि चाहिए अथवा उसका उदात्तीकरण नहीं करना चाहिए. धनवानों के लिए निर्धन बनना चाहे संतोषदायी हो भी. परन्तु निर्धनता कभी  संतोषदायी  नहीं होती. निर्धनता को संतोषकारी घोषित करना धर्म का विपर्यास है, बुराई और अपराध को बढ़ावा देना है तथा इस संसार को प्रत्यक्ष में नर्क में ढालना है.
कौन सा धर्म इन आवश्यकताओं को पूरा करता है? इस प्रश्न का विचार करते वक्त इस बात को यद् रखना चाहिए कि संत- महात्माओं के निर्माण के दिन अब बीत चुके हैं और संसार में कोई नया धर्म पैदा होनेवाला नहीं है. संसार को प्रचलित धर्मों में से ही किसी एक धर्म को चुनना होगा. इसलिए इस प्रश्न का विचार प्रचलित  धर्मों तक ही सीमित रखना चाहिए. 
हो सकता है कि प्रचलित धामों में से कोई एक धर्म उपरोक्त मापदन्डों में किसी एक कसौटी पर खरा उतरता हो या कोई दो पर. परन्तु प्रश्न यह है कि क्या कोई धर्म है जो इन तमाम मापदन्डों कि कसौटी पर खरा उतरता है? जंहा तक मेरी जानकारी है इन तमाम मापदन्डों पर खरा उतरनेवाला केवल एक ही धर्म है जिसे नया जगत अपना सकता है. यदि नए जगत को --और यह ध्यान रहे कि यह नया जगत पुराने जगत से सर्वथा भिन्न है-- किसी धर्म को अपनाना ही हो -- और नए जगत को ओउराने जगत कि अपेक्षा धर्म की अत्यधिक जरुरत है-- तो वह केवल बुध्द का धम्म ही हो सकता है.
ये तमाम बातें शायद आश्चर्यजनक प्रतीत होती हो. यह इसलिए कि बुध्द के सम्बध्द में लिखनेवालों में से अधिकांश लोगों ने केवल इसी कल्पना का प्रचार किया है कि बुध्द ने सिर्फ एक ही शिक्षा दी है; और वह है अहिंसा की. यह बहुत बड़ी गलती हैं. यह सच है कि बुध्द ने अहिंसा की शिक्षा दी है. मैं उसके महत्व को कम नहीं करना चाहता हूँ. क्योंकि वह एक महँ सिध्दान्त है. उस पर अमल किए बैगर संसार को बचाया नहीं जा सकता. मैं जिस बात पर बल देना चाहता हूँ वह यह है कि अहिंसा के अतिरिक्त बुध्द ने और बहुत सी बातों की शिक्षा दी है. उन्होंने सामाजिक, बौध्दिक, आर्थिक और राजनैतिक स्वतंत्रता की शिक्षा दी है उन्होंने समानता की शिक्षा दी, न केवल पुरुष और पुरुष के बीच की समानता की, बल्कि पुरुष और स्त्री के बीच की समानता की भी. बुध्द की तुलना में अन्य कोई ऐसे धर्म संस्थापक को खोजना कठिन होगा कि जिसकी शिक्षा लोगों के सामाजिक जीवन के इतने सारे पहलुओं को स्पर्श कराती हो और जिसके सिध्दान्त इतने आधुनिक हों और जिसका मुख्य उद्देश्य इन्सान को इसी धरती पर इसी जीवन में विमुक्ति दिलाना हो, न कि मृत्यु के बाद स्वर्ग का वादा करना."
धर्म  परिवर्तन
डॉ आंबेडकर ने १४ ऑक्टोबर १९५६ को नागपुर में सात लाख अनुयायियों के उपस्थिति में कहा :-
मनुष्य को इज्जत प्यारी है। लाभ प्यारा नहीं होता । हम सम्मान के लिए सघर्ष कर रहे है।
यह है नवायान का आन्दोलन-संघर्ष।
मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है-- इज्जत से रहना। इसकी पूर्ण प्राप्ति तक जितना अधिक हम आगे जा सकते है, उतना है आगे जाने की हमारी तीव्र  इच्छा है। इसके लिए हम जो कुछ भी त्याग करे वह थोडा हैं।
मैंने हिन्दू धर्म का त्याग करने का आन्दोलन १९३५ में शुरू किया था और बराबर इस आन्दोलन को चला रहा हूँ। येवला (नासिक जिल्हा) में इस आन्दोलन को चलने के लिए अप्रैल १९३५ में बड़ा जलसा किया था और उसमें एक प्रस्ताव द्वारा हमने निर्णय किया था की हम हिन्दू धर्म को छोड़ेंगे। मैंने उसी समय यह प्रतिज्ञा की थी कि यद्दपि मैंने  हिन्दू धर्म में जन्म अवश्य लिया है तो भी हन्दू धर्म में नहीं मरूँगा। ऐसी प्रतिज्ञा मैंने आज से २१ वर्ष पूर्व की थी और उसे आज पूरा कर दिखाया। इस धर्मान्तर से मैं बड़ा ही खुश हुआ हूँ और प्रफुल्लित हो उठा हूँ। मुझे ऐसा मालूम होता है कि मैं नरक से छुटकारा पा गया हूँ। मुझे कोई अंधभक्त नहीं चाहिए। जो लोग बौध्द धर्म में आना चाहते है उन्हें खूब सोच समजकर आना चाहिए ताकि वे आगे इस धर्म में सुदृढ़ रह सकें।
नवायान का अर्थ हैं--- हिन्दू धर्म जो जातिवाद का आधार है वह नर्क के समान है, उस नर्क समान हिन्दू धर्म से छुटकारा।
इसलिए डॉ आंबेडकर ने उसी दिन १४ ओक्टोबर १९५६ को अपने सात लाख अनुयायिओं को बौध्द धर्म कि दीक्षा देते समय उनसे २२ प्रतिज्ञा ली थी। 
महायान यह देवी-देवताओं से भरा पड़ा हैं, महायान में पूजा-अर्चना और कर्म-कांड बहुत ज्यादा हैं। 
हीनयान में भी देवी-देवताये, पूजा-अर्चना और कर्म-कांड है।
पुराने बौध्द धर्म में हिन्दू धर्म कि खिचड़ी पकाई गई है। क्योंकि हीनयान और महायान धर्मो ग्रंथो कि रचना इसवी सन के बाद करनेवाले ब्राह्मणवाद के ही लोग थे।
इसलिए डॉ आंबेडकर को पुराने बौध्द धर्म के जगह NEW BUDDHISM means NAVAYAN देना पड़ा।
इसलिए डॉ आंबेडकर को अपने सात लाख अनुयायिओं को निम्नलिखित २२ प्रतिज्ञाए देनी पड़ी।  
बौध्दों कि २२ प्रतिज्ञाएँ 
नवायान कि ये २२ प्रतिज्ञाएँ है:--
१.   मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को कभी ईश्वर नहीं मानूंगा और न मैं उनकी पूजा करूँगा। 
२.   मैं राम और कृष्ण को ईश्वर नहीं मानूंगा और उनकी पूजा कभी नहीं करूँगा।
३.   मैं गौरी, गणपति, इत्यादि हिन्दू धर्म के किसी भी देवी देवताओं को नहीं मानूंगा और न ही उनकी पूजा 
      करूँगा।
४.   मैं ईश्वर ने कभी अवतार लिया है इस पर विश्वास नहीं करूँगा।
५.   मैं बुध्द विष्णु का अवतार है इसे कभी नहीं मानूंगा। मैं ऐसे प्रचार को पागलपन और झूठा प्रचार समजता  
      हूँ।
६.   मैं श्राद्ध कभी नहीं करूँगा और न ही कभी पिंडदान दूंगा।
७.   मैं भौध्द धर्म के विरुध्द किसी भी बात को नहीं करूँगा।
८.   मैं कोई भी क्रिया कर्म ब्राह्मणों के हाथों से नही कराऊंगा।
९.   मैं "सभी मनुष्य एक हैं " इस सिध्दांत को मानूंगा।
१०. मैं समानता की स्थापना के लिए प्रयत्न करूँगा।
११. मैं बुध्द के अष्टांगिक मार्ग का पूर्ण पालन करूंगा।      
१२. मैं बुध्द के बताएं हुए दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करूँगा। 
१३. मैं प्राणिमात्र पर दया रखूँगा और उनका लालन-पालन करूंगा।
१४. मैं चोरी नहीं करूँगा। 
१५. मैं झूठ नहीं बोलूँगा।
१६. मैं ब्याभिचार नहीं करूँगा।
१७. मैं शराब नहीं पीऊंगा।
१८. मैं अपने जीवन को बौध्द धर्म के तिन तत्व अर्थात - ज्ञान, शील और करुणा पर ढालने का प्रयत्न करूंगा।
१९. मैं मनुष्य मात्र के उत्कर्ष के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को असमान और नीच मानने वाले अपने 
      पुराने हिन्दू धर्म का पूरी तरह त्याग करता हूँ और बुध्द धर्म को स्वीकार करता हूँ।
२०. मेरा ऐसा पूर्ण विश्वास हैं की बौध्द धर्म ही सध्दर्म हैं।
२१. मैं यह मानता हूँ कि मेरा पुनर्जन्म हो जहा हैं।
२२. मैं यह पवित्र प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज मैं बौध्द धर्म की शिक्षा के अनुसार आचरण करूँगा।
यह नवायान की वे २२ पवित्र प्रतिज्ञाएँ हैं जो पुराने बौध्द धर्म में नहीं थी, 
इसी कारण यह NEW-BUDDHISM means NAVAYAN  हैं।

             

                    
     
     
         
हीनयान का ग्रन्थ 

    

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