Wednesday 8 May 2013

THE OLD BUDDHA (563-483) and THE NEW BUDDHA (1891-1956)


            THE OLD BUDDHA AND THE NEW BUDDHA
                                             सिद्धार्थ गौतम महाकारुणिक बुद्ध ( B.C. 563 -  483 )
                                                                           और
                                             डॉ  भीमराव आंबेडकर महामैत्रैय बुद्ध ( 1891 - 1956 )

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध, जिन्होंने भारत में BC 438 से लेकर BC 483 याने पुरे 45 वर्षो तक भारत भर पैदल घूमकर  प्रज्ञा और करुणा द्वारे प्रचार और प्रसार किया उसे धम्म कहते है। उन्होंने कहा था मेरे धम्म का आधार प्रज्ञा और करूणा है। यही वो कारण है आगे चलकर धम्म का विभाजन हुआ। जिन्होंने करूणा का पक्ष लिया वे हिनयानी या स्थविर वादी कहने लगे। और जिन्होंने प्रज्ञा का पक्ष लिया वे महायानी कहने लगे। और आज तक करूणा बड़ी की प्रज्ञा बड़ी, यह विवाद कोई भी बौद्ध राष्ट्र समाप्त नहीं कर सका।
महाकारुणिक सिद्धार्थ गौतम के प्रचार और प्रसार- आन्दोलन  के कारण ही, उनके जीवन काल में ही आर्यों के अधर्म - (असमानता का धर्म )  चातुर्वर्ण्य ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र ) का सफाया हो गया। इसका सारा श्रेय गौतम बुद्ध को जाता है। यह विश्व की ऐसी पहली  महा क्रांति थी जो बुद्ध के पहले किसी ने नहीं की थी।
यह ऐसी क्रांति थी की भारत में सारा उल्टा -पलटा हो गया और  शुद्र राजा या देश के सत्ताधारी बन गए। और करिश्मा देखो जो ब्राह्मण थे वे भिखारी बन गए। उदहारण के लिए आप वशिष्ट और विश्वामित्र की लड़ाई का मुख्य कारण देख सकते है। वशिष्ट और बुद्ध का संवाद आप पढ़ सकते है। विश्वामित्र की  इस लड़ाई में आखरी जीत हो गई। ऐसी  ही एक जीत अशोक की हुई। ऐसी एक जीत शाश्त्रों की हुई -वेदों की ग्रंथो की हार हुई और बुद्धा के वचन त्रिपिटक और महायान ग्रन्थ बन गए। ब्राह्मण सत्ताधारी और समाज तिलमिला गया। सारी व्यवस्था बिखर गई। ब्राह्मण विद्वानों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। बुद्ध के प्रज्ञा के सामने ब्राह्मण हार गए।
इसी प्रज्ञा में  सम्राट अशोक का जन्म हुआ।
कलिंग देश के राजा और व्यापारी लोगों ने अशोक के जहाजों को रोक के रखा था, जिसके कारण अशोक को कलिंग पर लड़ाई करनी पड़ी और इस युद्ध में जो रक्तपात हुआ वह सारा विश्व जनता है,  और उसके बाद जब ब्राह्मणों ने जो इतिहास लिखा उसमे सम्राट अशोक को चांडाल कहा है। इसी सम्राट अशोक ने ब्राह्मणों की नीव खोद डाली और भारत को बौध्यमय बना दिया। 
कहने का तात्पर्य यह की बुद्ध ने उस समय की सारी सामाजिक व्यवस्था ही बदल दी।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ' बुद्ध एंड हिज धम्म ' ग्रन्थ में लिखते है ---- तथागत ने समजाया :- " संसार में आने का उद्देश्य ही यह है कि दरिद्रो, असहायों और आरक्षितो का मित्र बनना। जो रोगी हों ---श्रमण हों व दुसरे कोई भी हों -- उनकी सेवा करना। दरिद्रों, अनाथो और बूढों की सहायता करना तथा दूसरों को ऐसी करने की प्रेरणा देना।" सम्राट अशोक ने भारत में ही नहीं सम्पूर्ण  विश्व में यह अपना मिशन-कार्य बनाया। और बुद्ध के आठ अस्थियोंको 84 हजार टुकडे सुवर्ण के डब्बियों में बंद करके सम्पूर्ण भारत में ही नहीं, विश्व के दुसरे देशों में भी उसपर स्तूप बनाये और उस स्तूप के आगे एक अशोक स्तम्भ गाढ़ दिया जिसे राजाज्ञाएं कहते हैं।
सम्राट अशोक का grandson सम्राट बृहद्रथ मौर्य की ही हत्या BC 185 में उसके ही  सेनापति पुष्यमित्र ने अपने ही गुरु पतांजलि के कहने पर की थी। उसके बाद बौद्ध राजाओं, भिक्षुओं और बौद्ध लोगोंका जो सरे आम कत्ल हुआ वह इतिहास रक्तों के पन्नों से ऐसा लथपत है जिस की मिसाल विश्व में कंही भी नहीं मिलती, और इस युद्ध में ब्राह्मणों की ऐसी जित हुई की बौद्ध धम्म अपने ही वतन भारत से दुसरे देशों में भाग गया और दो हजार वर्षों तक लौटकर नहीं आया , और  जो लोग बौद्ध थे उनको गुलाम बनाया गया, और इन गुलामों को एक नया नाम दिया गया और वो नाम था  'शुद्र ' और जो बौद्ध लोग लड़ते लड़ते जंगल में भाग गए उन्हें न - छूने का कानून बना दिया, बादमें उन बौद्ध लोगों को एक नया नाम दिया गया ' अछूत '
इस तरह बुद्ध और उसके धम्म का नामोनिशान भारत से मिट गया।
विश्व के दुसरे विकसित और समृद्ध देशों में जो आज बुद्ध धम्म दिखाई दे रहा है, वह उसका असली चेहरा नहीं है, वह उसका नकली चेहरा है, वह उसका विकृत रूप है , वह वंहा दुसरे देशों के नाले में बहकर और गन्दा हो गया है। वंहा भिक्षु शादी करते हैं और वह सब काम-कार्य करते हैं, जिसे बुद्ध ने मना किया है, या जिसे बुद्ध अधर्म कहते हैं। वंहा नैतिकता की कोई कीमत नहीं है। वंहा उन्होंने अनैतिकता को नैतिकता कहा है। हाँ एक बात मानना पड़ेगा की वंहा बुद्ध की बहुत बड़ी-बड़ी मुर्तियोंकों सोने और हीरे-जवारत से सजाया गया हैं।
जापान, कम्बोडिया, थाईलैंड, ताइवान और चीन में आज तक दूसरा बुद्ध क्यों पैदा नहीं हुआ, जो उनकी धरती पर  धर्मचक्र परिवर्तित कर सके। इसके कई कारण है। ( Read Dr. B.R. Ambedkar's Writing and Speeches published by Maharashtra Government, India.)
जो धर्मचक्र परिवर्तित करता है- घुमाता हैं उसे ही बुद्ध कहते हैं।
बोधिसत्व धर्मचक्र परिवर्तित नहीं कर सकता। धर्मचक्र परिवर्तित करने की शक्ति बोधिसत्व में नहीं होती। धर्मचक्र परिवर्तित करने की शक्ति सिर्फ बुद्ध में होती हैं। इसलिए विश्व के बोधिसत्व ने बुद्ध की बराबरी करने का अपराध नहीं करना चाहिए। ऐसा अपराध किया गया है, इसलिए मुझे यह लिखने की आवश्यकता महसूस हुई है। बोधिसत्व देंग्योदाइशी साइच्यो ( जन्म : इ. स. 767 -- निर्वाण : 4 जून 822 ) तेंदाई पंथ के संस्थापक की तुलना डॉ आंबेडकर के साथ कैसे की जा सकती है -- यह तो वह कहावत हो गई ' कंहा  राजा भोज और कंहा  गंगू तेली।' क्या देंग्योदाइशी साइच्यो ने अपने लाखों लोगों के साथ धर्मचक्र परिवर्तन किया है - जैसे डॉ आंबेडकर ने अपने दस लाख लोंगे के साथ धर्मचक्र परिवर्तन किया है ? फिर यह किसकी चाल  है जो डॉ आंबेडकर को नीचा दिखने की कोशिश कर रहा है?
गौतम बुद्ध की तुलना विश्व में सिर्फ डॉ आंबेडकर से की जा सकती है और किसीसे नहीं। या यूँ कहिये डॉ आंबेडकर की तुलना सिर्फ गौतम बुद्ध से की जा सकती है और किसीसे नहीं।
बुद्ध की तुलना बुद्ध से ही की जा सकती है। एक बुद्ध ने अपने पांच भिक्षुओं के साथ  इ.स. पूर्व  438  में धम्म चक्र घुमाया जिसने  करुणा और प्रज्ञा से संपूर्ण विश्व को प्रकाशीत, प्रज्वलित और प्रदीप्त किया। तो दुसरे बुद्ध ने
इ. स. 1956 में अपने दस लाख अनुयायीयों के साथ नागपुर में सधम्मचक्र परिवर्तित किया जिसने भारत के संविधान द्वारा विश्व  में भाईचारा - FRATERNITY का  शंखनाद किया और जिसकी आवाज विश्व की आवाज हो गई है। 
This is the history of OLD BUDDHA.
Now the NEW HISTORY of NEW BUDDHA  starts ------------------------------------------
डॉ आंबेडकर का ' Buddha and FUTURE of HIS DHAMMA ' नामक लेख ' महाबोधि सोसायटी, कलकत्ता ' की मासिक पत्रिका में मई 1950  में प्रकाशित हुआ था। जिसमें लिखा है :- " एक प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक धर्म को देना चाहिए। शोषितों और पैरों तले कुचलों के लिए वह किस तरह की मानसिक और नैतिक राहत पंहुचता हैं? यदि वह ऐसा नहीं कर सकता हो तो उसका अंत ही होगा। क्या हिन्दू धर्म पिछड़ें वर्गों, अछूत जाती  और जन -जातियों के करोंडों लोगों को कोई मानसिक और नैतिक राहत पंहुचता है?  निश्चित नहीं। क्या हिन्दू इन पिछड़े वर्गों, अछूत जाती और जन -जातियों से यह आशा रख सकते हैं कि बगैर किसी मानसिक और नैतिक राहत की उम्मीद किए वे हिन्दू धर्म को चिपके रहेंगे? इस तरह की आशा रखना सर्वथा व्यर्थ होगा। हिन्दू धर्म ज्वालामुखी पर सवार हुआ है। आज यह ज्वालामुखी बुझा हुआ नजर आता है। लेकिन सत्य यह है की यह बुझा हुआ नहीं है। एक बार पिछड़ें वर्ग, अछूत जाती और जन -जातियां का यह करोंड़ों का शक्तिशाली समूह अपने पतन के बारें में सचेत हो जाएगा और यह समझ जाएगा कि अधिकतर हिन्दू धर्म के सामाजिक दर्शन के कारण ही ऐसा हुआ है, तब यह ज्वालामुखी फिर से फट जायेगा। रोमन साम्राज्य में फैले मुर्तिपुजन को  ईसाई धर्म द्वारा बहार फेक दिए जाने की बात यंहा याद आती है। जैसे ही लोंगोंको यह एहसास हुआ कि मुर्तिपुजन से उन्हें किसी तरह की मानसिक और नैतिक राहत मिलनेवाली नहीं है, तो उन्होंने उसका त्याग किया और ईसाई धर्म को अपनाया। जो रोम में हुआ वही भारत में जरुर होगा, हिन्दू लोगों को समझ आनेपर वे निश्चय ही बौद्ध धम्म की ओर ही मुड़ेंगे। " डॉ आंबेडकर की यह चेतावनी और भविश्यवाणी 1956 में सच हुई।
महामैत्रेय आंबेडकर सम्बुद्ध ने इसी उपरोक्त लेख में कहा :- " और यह ध्यान रहे कि यह नया जगत पुराने जगत से सर्वथा भिन्न है।" इसका यह आशय है की गौतम बुद्ध का जगत पुराना है - क्योंकि बुद्ध के ज़माने में सिर्फ चार ही जातियां थी:- (१) ब्राहमण, (२) क्षत्रिय, (३) वैश्य और (४) शुद्र।  और तिन धर्म थे -
(१) आर्य-वेद  धर्म (२) जैन धर्म और (३) बौद्ध धम्म। और ब्राह्मणी - दर्शन के अतिरिक्त कोई बासठ दार्शनिक मत थे और ये सभी ब्राह्मणी - दर्शन के विरोधी थे।
लेकिन डॉ आंबेडकर के ज़माने में चार हजार जातियां है। आर्य-वेद धर्म, जैन धर्म और गौतम बुद्ध के बाद चार  मुख्य धर्म उत्पन्न हुए :- (१) ब्राहमण- मनुस्मृति धर्म, (२) ख्रिश्चन रिलिजन   (३) इस्लाम मजहब और (४) क्यम्युनिजम। और हजारों अनेक अलग अलग पंथ है।
सम्राट अशोक का एक अखंड संपूर्ण बौद्ध भारत का इ.स. पूर्व 185 के बाद 627 राजा और महाराजाओं के  विभिन्न राज्यों में इ.स. 1950 तक  विभाजन हुआ।
ब्रिटिश सम्राट के समक्ष, लंडन के गोलमेज सम्मेलन में अध्यक्ष ने कहा :- " डॉ आंबेडकर, क्या आप इसे संविधान में लिखेंगे ? "( बाबासाहेब डॉ आंबेडकर सम्पूर्ण वाड्मय - खंड 5, पृष्ठ 147 -भारत सरकार प्रकाशन )
खंड 5, पृ ष्ठ 153 पर डॉ आंबेडकर ने कहा :--" -- तब संघीय संविधान कार्यान्वित करने का हमारा उद्देश्य पूरा हो जाता है। यह राजा - महाराजाओं की स्वंतंत्रता के अनुरूप रहेगा कि वे संघ में शामिल होना चाहते हैं या नहीं। "
मेरे कहने का अर्थ है ' भारत का संविधान ' लिखने का अधिकार डॉ आंबेडकर को  ब्रिटिश सरकार और गोलमेज परिषद् के छब्बीसवी बैठक -- 21 सितम्बर 1931 में ही दे दिया था। 
(१) डॉ आंबेडकर ने संघीय संविधान द्वारा भारत को 26 नवम्बर,1950 में सम्राट अशोक को उसका भारत भेंट  कर दिया।
(२) डॉ आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 में  भारत को बौद्धमय करके सिद्धार्थ गौतम बुद्ध को उसका भारत वापस कर दिया।
डॉ आंबेडकर ने यह (१) और (२) प्रमुख कार्य करके भारत को पुनर्जीवित करके, भारत का इ.स. पुर्व का सुवर्ण काल, गौरान्वित काल लोटा दिया।
क्या ऐसा कार्य करने की महान शक्ति किसी भारतीय में थी, है, या रहेगी ?

  
  
              

Saturday 4 May 2013

JAI BHIM

                                                                 जय  भीम 
आज भारत में "जय भीम " कहकर नमस्कार लेने वालों की संख्या कम से कम 5 करोड़ है। जो किसी एक 5 करोड़ वाले स्वंतंत्र देश की कुल लोक संख्या के बराबर है।
भारत में 'जय भीम ' - नमस्कार लेने का चलन डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन में ही उनके सामाजिक आन्दोलन ' महाड  का  पानी का सत्याग्रह ' से शुरू हुआ था।
'POONA PACT ' यदि नहीं होता, तो डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर का " SEPARATE SETTLEMENT " ऐसा एक ' स्वंतंत्र वसाहत ' होता, जो अपने आप में एक स्वंतंत्र देश कहलाता,जिसमे स्वन्तन्त्रपुर्वक रहनेवाले लोग सिर्फ ' जय भीम' कहने वाले होते। लेकिन ' जय भीम ' कहनेवालों का ऐसा दुर्भ्याग्य है जिस पर ' गाँधी  और उसकी कांग्रेस ' ने उनके मुंह का ही निवाला सदा के लिए छीन लिया। निवाला छीन लेने के कारण  आज ' जय भीम ' वाले सत्ता से बेदखल है। सत्ता से बेदखल होने के कारण जय भीम वाले गाँधी और कांग्रेस के गुलाम है। यह एक नए प्रकार की गुलामी हम जय भीम वालों पर थोपी गई है। जिसे हम लोगोंको समजना चाहिए। इसका एक नयी दृष्टी कोण से, नए अंदाज से स्वंतंत्र पूर्वक अभ्यास करना चाहिए। जब तक कांग्रेस जिन्दा रहेगी तब तक जय भीम वाले भारत पर राज नहीं कर सकते। ' भारतीय जनता पार्टी ' भी कांग्रेस का एक कट्टर रूप है जिसे जहाल रूप कहते है - वह कांग्रेस पार्टी से भी महा भयानक रूप है, भारत में बुद्ध और उसके धम्म को बिलकुल बर्दास्त नहीं करती। भारतीय जनता पार्टी का महानायक - श्रीराम है - जिसने शुद्र लोगों के राजा ' शम्भुक ' जो बुद्ध ने बताई ' ध्यान साधना 'कर रहा था, उसका निष्कारण वध किया।
तुम्हारा कोई भी मित्र नहीं है। वेदों के ग्रन्थ तुम्हारे खिलाफ लिखे गये है। पुराण जिनकी संख्या डॉ . भंडारकर के मुताबित कम से कम 222 है, वे सभी ग्रन्थ तुम्हारे खिलाफ लिखे गया है। ' रामायण ' और ' महाभारत ' ये दोनों ग्रंथो की रचना तुम्हारे खिलाफ रची गई है। ' मनुस्मृति ' जो इनका संविधान है वो भी तुम्हारे लोगोंको दण्डित करने के लिए लिखा गया है। आप ये सभी ग्रन्थ पढ़कर देख लीजिये। आप को सत्य और झूठ समाज में आ जायेगा। विश्व के सभी देशों के लोगों ने ये सभी ग्रन्थ पढ़ना चाहिए।
आप और आप की आने वाली संताने ऐसे भारत में फिर कैसे जियेंगे? इसका हल तो आप को ही ढूढना होगा।
हम ' GOOD MORNING ' के बदले हम ' GOOD MORNING ' कहते, लेकिन हम लोग ' जय भीम ' नहीं कहते, और तो और सामने ' GOOD MORNING ' कहने वाला भी हम ' जय भीम ' कहने पर ' जय भीम ' नहीं कहता।
ठीक वैसे ही ' वालेकुम सलाम ' कहने पर हम लोग ' सलाम वालेकुम ' कहते है, पर हम लोग उनको ' जय भीम ' कहने पर वो लोग बदले में ' जय भीम ' नहीं कहते।
ठीक वैसे ही ' जय श्रीराम ',  ' जय कृष्ण  ' , ' राधे राधे ', ' हर हर महादेव ',  और न जाने कितने प्रकार के नमस्कार हम लोग कहते है - लेते है, पर बदले में वे लोग हमें कभी भी ' जय भीम ' नहीं कहते।  ऐसा रवाया इन  लोंगों का क्यों है? क्या इससे भाईचारा पैदा होगा?
आज कल और एक नया चलन पैदा हुआ है। ' जय भीम ' के द्वारा पैदा होनेवाला  ' नमो बुद्धाय ' अब हम से        ' जय भीम ' नहीं लेता और बदले में हमें ' नमो बुद्धाय ' कहने के लिए कहता है। यह कैसी विडंबना है, यह कैसी मानसिकता है। इसे ' ब्राह्मणवादी ' मानसिकता कहते है। हम तुमसे 'श्रेष्ठ' है। क्या विश्व का कोई भी भिक्षु डाक्टर आंबेडकर से बड़ा हो सकता है? हमें इसका उत्तर चाहिए। क्या पिला चीवर- कपड़ा धारण करने से डॉक्टर आंबेडकर से बड़ा हो सकता है। डॉक्टर आंबेडकर ने दस लाख लोगों के साथ जो धर्मचक्र परिवर्तित किया, क्या विश्व का कोई भिक्षु ऐसा कर सकता है। यदि ऐसा नहीं कर सकता तो, वो अपने आप को बड़ा कैसे समजता है। इसे ही बुद्ध ने 'अज्ञान' कहा है। बुद्ध को न जानना को ही अज्ञान कहा गया है। जो धर्मचक्र को परिवर्तित करने की ताकत- क्षमता रखते है उसे ही बुद्ध कहते है। और यह करिश्मा सिर्फ डॉक्टर आंबेडकर ने दो हजार साल के बाद इसी धरती पर करके दिखाया, यह क्या सोचने का विषय नहीं है? यह एक विपक्ष की चाल  है- राजनीती है, जो तुम्हे सोचने से  रोकता है।
यदि तुम लोग डॉक्टर आंबेडकर को ही ' मैत्रय बुद्ध ' कहेंगे, तो भारत बौद्धामय होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। अपने बाप को अपना बाप कहने में क्या शर्मन्दगी है। डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर बोधिसत्व नहीं थे। डॉक्टर आंबेडकर मैत्रेय बुद्धा थे। ' बुद्ध एंड हिज धम्म ' में खुद बाबासाहेब ने कहा है की ' कब धम्म सधम्म होता है  '--    ' जब वह ' करुणा ' और ' प्रज्ञा ' से ऊपर उठकर ' मैत्री ' को धारण करता है। FRATERNITY- भाईचारा - बंधुभाव ही भारत का संविधान है। यह संविधान ही BUDDHISM  है।

Thursday 2 May 2013

ONE CONSTITUTION OF ALL COUNTRIES- FRATERNITY

विश्व के राष्ट्र किस दिशा में जा रहे है और उनके देश के लोगोंको किस दिशा में लेकर जाने का है - क्या इसका
100 साल का मास्टर प्लान Righteous Thought से किसी देश के प्रज्ञावान सांसदो ने बनाया है ? यदि नहीं बनाया तो कब बनाओगे ? यदि बनाया है तो, नया प्रेसिडेंट या नया पंतप्रधान आते ही पुरानी राजनैतिक विचारधारा क्यों बदल दी जाती है ? जिसके कारण लोगोंका मनोबल गिर जाता है और राष्ट्र में अस्थिरता आ जाती है और राजनीती में लोगोंका विश्वास पक्का होने के बजाय, लोग राजनीति को एक मजाक समजकर उसे सिखाने के बजाय उससे अज्ञान रह जाते है।
यदि अपने अपने राष्ट्र को अधिकाधिक मजबूत और लोकशाही के मार्ग में कल्याणकारी, हितकारी और विकासशील बनाना है, तो अपनी अपनी प्रजाकों वे सब मूल अधिकार देने होंगे जिसे कानूनन सुरक्षा देनी होंगी - जिसे स्वतंत्रता, समता, न्याय और भाईचारा कहते है।
यदि यह मूलमंत्र सभी देशोंका होगा तो विश्व में कंही भी युद्ध नहीं होगा और शांति प्रस्थापित करने में सभी का सहयोग प्राप्त होगा।
रही बात धर्म की तो धर्म को दिल में धारण करो। धर्म का बाजार मत लगाओ। धर्मं को मैदान में मत उतारो। धर्मं को रास्तेपे मत उतारो। धर्म लहूलुहान हो जायेगा। फिर कोई भी नहीं बचेगा। न आप बचोगे और न आप का धर्म बचेगा। यदि अपना अपना धर्म बचाना है, तो सबसे उत्तम मार्ग है, अपने अपने धर्म की बाजार में मत बोली लगाओ या उसे मत बेचो, नहीं तो धर्मं का स्वरुप बाजारुपन हो जायेगा। बाजारुपन का अर्थ आप खूब अच्छी तरह से समजते हो, मुझे उसका गहरा अर्थ समजाने की जरुरत नहीं होगी। यदि उस धर्म को यदि वह गहरा बाजारू अर्थ मिल जाता है तो इसके लिए आप वे सभी जिम्मेदार है जो उस धर्म के लोग है। फिर उस बाजारू धर्म का उपयोग वैसा ही किया जाता है जैसे किसी बाजारू औरत का किया जाता है। फिर कैसा रोना धोना, चिल्लाना, शोर मचाना, हंगामा करना और तो और खून खरबा करना। अपने अपने धर्म की इज्जत करना सीखो, अब नहीं सीखोगे तो कब सीखोगे? धर्म ये तुम्हारे दिल के समान है। दिल जैसे तुम्हारे शारीर के अन्दर रहता है, वैसे ही धर्मं को मन के दिल में रखो। धर्म से प्यार करना सीखो। और बात यह है की जिससे तुम्हे प्यार हो जाता है, उसे सरे आम बदनाम नहीं करते। धर्मं यह प्यार करने की चीज है, उसे इतना प्यार करो की तुम धर्म के बनकर रह जाओगे, और फिर धर्म तुम्हारा बनकर रह जायेगा। यही वह राज है धर्म को जानने का. वरना तो बाकि सब धर्मं का ढोल खूब पिट ते रहते है और ज़माने को यह दिखाते रहते हैं की उनके जैसा धर्म को जाननेवाला और दुनिया में दूसरा और कोई नहीं है। ऐसे धर्म के पाखंडी लोगों से आम जनता ने दूर ही रहना चाहिए। और धर्म को बाजारू इन्ही पाखंडी लोगोने बनाया है, इसलिए ऐसे लोगोंसे सावधान रहना चहिये।
दुनिया में आज तक जितने भी युद्ध हुए, वे सभी इन्ही पाखंडी लोगोंके कारण हुए है। और मरनेवाले ये पाखंडी लोग नहीं थे, तो इन पाखंडी लोगो ने उन सभी आदमी, औरत और बचोंको मौत के घाट उतरा  - जिसे आम आदमी कहते है। क्योंकि आम आदमी अज्ञानी होता है, पाखंडी नहीं होता।
आम आदमी पाखंडी नहीं, ज्ञानी होना चाहिए। और ज्ञान का मूल है भाईचारा। भाईचारा में नफ़रत नहीं होती। और जंहा नफ़रत नहीं वंहा युद्ध कैसा?
इसलिए सभी देशों का एक संविधान होना चाहिए, जिसकी बुनियाद सिर्फ और सिर्फ भाईचारा होनी चाहिए।