Wednesday 1 June 2016

POETRY OF ANIL PANCHBHAI

                                                             कविता संग्रह
कारवां और मसीहा
लोगों का कारंवा ले जानेवालो
तुम दुनिया के मसीहा नहीं होते।
तुम्हे तुम्हारा पता नहीं है
खुद को गुमराह करनेवालो।
शब्दोंसे खेलनेवालों
तुम्हारी विचारधारा नहीं होती।
युगों से मज़धार में बहानेवालों को
दूसरा किनारा नसीब नहीं होता।
विचारों के महल बनानेवालों
तुम्हारा वह ठिकाणा नहीं होता।
इतिहास के पन्नों में पढ़ के देखो
खँडहर ही खँडहर नजर आते है।

अज्ञात सत्ता 
बरस बरस तू, इतना बरस तू
अब लोग कहेंगे, बस अब बरस ना तू।
लोग तुज़पर इलजाम लगा रहे है
उनसे तुमने दुशमनी कर ली है।
जंहा सूखा ही सूखा ही पड़ा था
कंही धरती ही धरती फटी थी।
रेगिस्तान में तू क्यों नहीं बरसता
हरियाली वंहा तू क्यूँ नहीं उगता
क्यूँ वहांके लोगोसे तू दुश्मनी करता है
जंहा बूंद बूंद पानी को लोग तरसते हैं।
बरस बरस तू इतना बरस तू
जब लोग कहेंगे बस अब बरस ना तू।
विज्ञान ने लोगोंको डरा दिया है
भविष्य में पीनेको पानी नहीं मिलेगा।
झुठला दे तू इस भविष्य वाणी को
विज्ञान से ऊपर तेरी 'अज्ञात सत्ता' है।
कोई जरुरी नहीं हर राज बेपर्दा हो
कई ऐसे राज है, जो राज रहे तो अच्छे है।
जो 'शुन्य ' है उसका कोई कारण नहीं होता
जो 'शांत ' है उसका कोई स्थान नहीं होता।
जो जिसे पकड़कर रखता है
वह उससे छूटता नहीं है
जो उसस से छूटता रहता है
फिर एक के बाद एक सब छूट जाता है।
इसका कोई माहिर नहीं है
न इसका कोई मसीहा है।
न इसकी कोई राह है
न इसकी कोई मंजिल है
मत पूछों ये क्या है.………………
बहुत युग बीत गए
इंसान अब बोअर हो गया है
अब ऐसा करिश्मा दिखा दे तू
दिन को भी तारे नजर आ जाये।
हाय तोबा मच जाये जिधर-उधर
परबानु बनाने वाले तोबा तोबा कर ले।