Friday 29 November 2013

CARWAN

                    कारवां 
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अनिल पंचभाई --मोबाईल न.. . 9676669465
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----आज जो हमें आंबेडकर का कारवां समजते  है,
     वे कभी हमें नाग-द्रविड़ का कारवां कहते थे।
----इन्ही द्रविड़-नागों का एक जम्बूद्वीप देश था,
     जिस पर इन्होने युगों तक शासन किया था।
----'बुद्ध' को जब 'धम्म का साक्षात्कार' हुआ,
     तो इसी कारवां ने बुद्ध का साथ देकर बौद्ध हो गए।
--- अशोक मौर्य और आर्यों का कलिंग युद्ध हुआ,
     तो इसी कारवां ने अशोक मौर्य को सम्राट बनाया।
----इस कारवां को पतंजलि ने ई. सन. 185 पूर्व उधेडा,
     जो दो हजार वर्षो तक गुलाम-शुद्र बनाये गए।
----इस्लाम ने तलवार-तोफ़ो से भारत को रोंदा,
     तो इसी गुलामों को मुस्लमान बनाया गया,
     इसी कारवां ने इस्लाम कि ताकत बढ़ाई,
     तो मुगल मुसलमानों ने भारत पर शासन किया।
----शिवाजी ने 'हिन्द साम्राज्य' कि घोषणा कि,
     तो इसी कारवां ने शिवाजी कि ताकत बढ़ाई।
----चार हजार किलोमीटर दूर से ब्रिटिश भारत आये,
     तो इसी कारवां के गुलाम ब्रिटिशों के सैनिक बने,
     गुलामों को जब बंदूकों से जीने का सहारा मिला,
     तो इसी कारवां ने ब्रिटिशों को भारत जित कर दिया।
----आंबेडकर ने भारत को गुलामी से मुक्ति कि घोषणा कि,
      तो इसी कारवां ने 1920 से 1956 तक भीम का साथ दिया।
-----भारत के 'लोकतंत्र का संविधान' लिखने का जब ऐलान हुआ,
      तो इसी कारवां ने भारत का 'आरक्षण संविधान' लढ के लिखा।
-----आंबेडकर हिन्दू धर्म के छुआछूत-जातिपाति  से तंग आकर,
       नागपुर में दस लाख अनुयायीयों के साथ बौद्ध हो गए।
-----फिर एक बार विश्व में 'धम्मचक्र' घुमाने के लिए,
       इसी कारवां ने अपनी पूरी ताकत लगाई है।
-----भारत अब विश्व के साथ लोकतंत्र कि राह पर चल पड़ा है,
       तो कुछ भारतीय लोकतंत्र को बदनाम कर रहे है,
       मत भूल जाना इतिहास इस कारवां के 'जंग' का,
       जिन्होंने बदले में कई साम्राज्य जित कर दिए है।
-----यह कारवां वह ताकत है जिसका किसीको अंदाज नहीं,
       आज भी लोकसभा और विधान सभायें हमारी दम से है।
----- भीम के गुजर जाने से ये कारवां बिखर कर बिक रहा है,
       गुजारिश है आओ भीम का सपना भारत बौद्ध बनाओ।

 

Thursday 28 November 2013

JAI BHIM BUDDHIST BROTHERHOOD

                                                    JAI  BHIM
                      BUDDHIST BROTHERHOOD
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               DR. BABASAHEB AMEDKAR'S URGE TO THE ALL AMBEDKARIETS
                                         MAKE INDIA A BUDDHIST NATION
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                                     ANIL PANCHBHAI-- Cell NO. 9676669465
                                 WHY ? AND HOW ?
(1) We are EDUCATED and DIVIDED but NOT ORGANIZED under ONE UMBRELLA,
      ONE BANNER and ONE BLUE FLAG.
(2) AMBEDKARIETS are divided in all STATES of INDIA.
(3) AMBEDKARIETS are divided in all POLITICAL PARTIES who HATES AMBEDKAR and
      BUDDHA.
(4) AMBEDKARIETS are divided in all SOCIAL MOVEMENTS who HATES AMBEDKAR and
      BUDDHA.
(5) AMBEDKARIETS are divided in all BUDDHIST VIHARS.
(6) MILLIONS of AMBEDKARIETS are HARIJANS HINDUS who are SLAVES.
(7) We do not have a COMMON BUDDHIST VIHAR/PLACE like NAGPUR DIKSHA BHOOMI
      and BOMBAY CHAITYA BHOOMI in other CAPITAL STATES of INDIA.
(8) AMBEDKAR BUDDHISM IS NOT (a) HINAYAN BUDDHISM (b) MAHAYAN BUDDHISM
      (c) MANTRAYAN BUDDHISM (d) TANTRAYAN BUDDHISM OR ANY OTHER SECT.
(9) AMBEDKAR BUDDHISM CONSTITUTION is 22 OATHS- प्रतिज्ञाए :-----
      (१ )    मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को ईश्वर नहीं मानूंगा और उनकी पूजा कभी नहीं करूँगा।
      (२)     मैं राम, कृष्ण को ईश्वर नहीं मानूंगा और उनकी पूजा कभी नहीं करूँगा।
      (३)     मैं गौरी, गणपति इत्यादि हिन्दू धर्मं के किसी भी देवी -देवता को नहीं मानूंगा और न उनकी पूजा
                करूँगा।
      (४)     ईश्वर ने कभी अवतार लिया है, मैं इस पर कभी विश्वास नहीं करूँगा।
      (५)     भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं मै इसे कभी नहीं मानूंगा, मैं ऐसे प्रचार को पागलपन और झूठा
                प्रचार समझता हूँ।
      (६)     मैं श्राद्ध नहीं करूँगा, न कभी पिण्डदान दूंगा।
      (७)     मैं बुद्धधम्म के विरुद्ध किसी भी कार्य को नहीं करूँगा।
      (८)     मैं कोई भी क्रिया-कर्म ब्राह्मण के हाथ से नहीं कराउंगा।
      (९)     मैं सभी मनुष्य एक है इस सिद्धान्त को मानूंगा।
      (१०)   मैं समानता कि स्थापना के लिए प्रयत्न करूँगा।         
      (११)   मैं भगवान बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का पालन करूँगा।
      (१२)   मैं भगवान बुद्ध कि बताई हुई दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करूँगा।
      (१३)   मैं प्राणी मात्र पर दया रखूँगा और उनका लालन-पालन करूँगा।
      (१४)   मैं चोरी नहीं करूँगा।
      (१५)   मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
      (१६)   मैं व्यभिचार नहीं करूँगा।
      (१७)   मैं शराब आदि कोई नशा नहीं करूँगा।
      (१८)   मैं अपने जीवन को बौद्धधम्म के तीन  तत्वों अर्थात प्रज्ञा, शील, करुणा पर ढालने का प्रयत्न
                करूँगा।
      (१९)   मैं मनुष्यमात्र के लिए हानिकारक और मनुष्यमात्र को असमानता तथा नीच माननेवाले अपने
                पुराने हिन्दू धर्म का पूरी तरह से त्याग करता हूँ और बुद्धधम्म को स्वीकार करता हूँ।
      (२०)   मेरा पूर्ण विश्वास है कि बुद्धधम्म ही सद्धम्म है।
      (२१)   मैं यह मानता हूँ कि मेरा नया जन्म हो रहा है।
      (२२)   मैं यह पवित्र प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं बुद्धधम्म कि शिक्षा के अनुसार ही आचरण करूँगा।
                           आइये हम इन प्रतिज्ञाओं को अपने जीवन का आधार बनाये।
 (10)  AMBEDKAR BUDDHISM is the only one UMBRELLA, BANNER and BLUE FLAG
          under which WE all the AMBEDKARIETS CAN MAKE INDIA A BUDDHIST NATION.
(11)   And then WORLD BUDDHIST COUNTRIES SHALL HELP US TO RULE ON INDIA IN
         A BUDDHIST WAY WHICH IS RIGHTEOUS DEMOCRACY.
(12)  Without BROTHERHOOD no one can attain the state of 'BUDDHA'.
(13)  BUDDHIST BROTHERHOOD MEANS NO FEELING OF CASTE, CLASS, CREED,
         COLOR, RELIGION, RACE, GENDER AND MISBEHAVIOUR.
                         JOIN JAI BHIM BUDDHIST BROTHERHOOD

    

Saturday 16 November 2013

BUDDHA ARE NOT BORN


                                जो लोगो से सिखाता नहीं है- वह बुद्ध कैसे बनेगा ?

'बुद्ध ' ऐसे ही नहीं बनते
हाथ में भिक्षा पात्र लेकर
भारत भ्रमण करना पड़ता है.…
बुद्ध ने हर किसीसे सिखा
चाहे राजा  हो या रंक,
बुद्ध को जीवन में कितने लोग मिले
उनसे जीवन जीने कि कला सीखी। ....
जो कुछ भी बुद्ध ने सिखा है
वह सब लोगो से ही सिखा है। …
स्त्रियो ने बुद्ध को 'शील ' सिखाया
वर्णा जंगल में 'शील ' का क्या महत्व। …
गरीबो ने बुद्ध को 'करुणा ' सिखाई
वर्णा जंगल में 'करुणा ' का क्या महत्व। …
अज्ञानियो ने बुद्ध को 'प्रज्ञा ' सिखाई
वर्णा जंगल में 'प्रज्ञा ' क्या महत्व। ....
बुद्ध ने जो 'पारमिता ' सीखी
वह सब लोगो ने बुद्ध को सिखाई
'नैतिकता ' लोगोने बुद्ध को सिखाई।।।।
जाकर देखो गरीब बस्तीमे
वहाँ 'बुद्ध ' का प्रशिक्षण दिया जाता है.……
राग , लोभ , मोह, नफ़रत पर काबू पाना है
तो ' अछूत ' लोगो से सीखना होगा। ………  

Tuesday 4 June 2013

WHY AMBEDKAR NOT BECAME DHARMASANSTHAPIKA?

                                                           जनसंख्या और भीम प्रतिज्ञा
                              WHY AMBEDKAR NOT BECAME DHARMASANSTHAPIKA?
(1)  1870 से हर वर्ष वर जनगणना आयुक्त द्वारा जनगणना की जो रिपोर्ट प्रकाशित की जाती रही है , उससे भारत की सामाजिक तथा धार्मिक अवस्थाओं के बारे में अन्यत्र कंही भी उपलब्ध न होने वाली अमूल्य जानकारी उपलब्ध है। 1910 से पहले जनगणना आयुक्त का ' धर्मानुसार जनसँख्या ' नामक एक लेख रहता था। इस लेख में (१) मुस्लिम, (२) हिन्दू और (३) ईसाई आदि की जनसँख्या रहती थी। 1910 की जनसँख्या की रिपोर्ट में चालू परम्परा को छोड़कर नई बात अपनाई गई। प्रथम बार हिन्दुओं का तिन भिन्न वर्गो में बटवारा किया गया - (१) हिन्दू , (२) आध्यात्मवादी और आदिवासी  और (३) अछूत।  तब से यह नवीन वर्गीकरण प्रचलित है। (खं-14, पृ-71)
(2) जनगणना आयुक्त ने दोनों वर्गो को बाटने के लिए खास -खास कसोटिया ( देखे भारत की जनगणना (1911) भाग -1, पृष्ठ -117) निश्चित की है, जो शत प्रतिशत हिन्दू नहीं , ऐसी जातियों और कबीलों के लक्षण इस प्रकार दिए गए है --
            (१) ब्राह्मणों का प्रभुत्व नहीं मानते  (२) किसी ब्राह्मण अथवा अथवा अन्य किसी मने हुए हिन्दू गुरु     से मंत्र नहीं लेते  (३) देवों को प्रमाण नहीं मानते (४) हिन्दू देवी -देवताओं को नहीं पूजते  (५ ) अच्छे ब्राह्मण उनका संस्कार नहीं करते  (६ ) उसका कोई ब्राह्मण पुरिहित नहीं होता (७) हिन्दू मंदिरों के गर्भ गृहों में नहीं जा सकते (८) स्पर्श अथवा एक निश्चित सीमा के भीतर आकर उसे अपवित्र कर देते है (९) अपने मुर्दों को गाढ़ते है  और (१०) गोमांस खाते है और गो के प्रति श्रद्धा नहीं रखते।
             इन दस कसोटियो में से कुछ ऐसी है जो हिन्दुओ को आध्यात्मवादियो और आदिवासियों से पृथक करती है। शेष ऐसी है जो उन्हें अछूतों से पृथक करती है। अछूतों को हिन्दुओ से पृथक करने वाली क्रम
संख्या - २ , ५ , ६ , ७  तथा १० है।
(3) डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर ' अछूत - कौन थे और कैसे हो गए ' नामक शोधपूर्ण ग्रन्थ में लिखते है ------
      अछूतों की उत्पत्ति के दो मूल कारण है --(१ ) ब्राह्मणों द्वारा बहिष्कृत लोगो और बौद्धों के प्रति तिरस्कार
       भाव रखना तथा घृणा करना। (२) बहिष्कृत लोगो द्वारा गोमांस भक्षण जरी रखना जबकि दूसरों ने उसे
       त्याग दिया था।
 (4) बौद्ध नागवंशीय थे।
 (5) अछूत बौद्ध थे। नागवंशियो ( बौद्धों ) को अछूत बनाया गया। हिन्दू धर्म में अछूतों के साथ जानवरों से
       बद्त्त्तर व्यवहार है।
 (6) मुसलमान सम्राटो ने अछूतों को इस्लाम मजहब में भाईचारा का दर्जा देकर मुसलमान बनाया। इसलिए  
       मुसलमानों से नफ़रत करते है। भारत के सभी मुसलमान अछूत है।
(7) गुरु गोविन्द सिंग ने अछूतों को सिख बनाया।
(8)  ब्रिटिश साम्राज्य ने अछूतों को ईसाई रिलिजन में भाईचारा का दर्जा देकर ईसाई  बनाया।
(9) लेकिन अछूतों की स्थिति भी इस्लाम मजहब और ईसाई रिलिजन में गरीबी की और लाचारी की थी।
(10) बाबासाहेब आंबेडकर अछूत थे। अछूतों की स्थिति भिन्न भिन्न धर्म में गुलाम, दास,गरीब और लाचारी
      देखकर बाबा ने महाराष्ट्र के येवला कांफ्रेंस 13 अक्तूबर 1935 को हिन्दू धर्मं को त्याग ने की प्रतिज्ञा की।
      यही है वह ' भीम प्रतिज्ञा ' -- हिन्दुओं के पैरोतले की जमीन खिसक गई। हिन्दुओं को लगा यदि आंबेडकर
      इस्लाम मजहब अपने अनुययियो के साथ काबुल करते है तो भारत इस्लाम देश बन जायेगा। यदि
      आंबेडकर ईसाई रिलिजन अपने अनुययियो के साथ अंगीकार करते है तो भारत ईसाई देश बन जायेगा।
(11) विश्व के धर्म के ठेकेदारों ने डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर को सत्ता, रूपया और न जाने किस किस बात का
        लालच दिखाया। लेकिन डॉ . आंबेडकर को कोई भी लालच खरीद नहीं सकी --- जैसे सिद्धार्थ गौतम को
        कोई भी सुन्दरिया लुभा नहीं सकी और महाराजा शुद्धोधन, बिम्बिसार और प्रसेनजित अपना राज्य भी 
        देकर लुभा नहीं सके।
(12) जिन्हा ने मुसलमानों के लिए भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बनाया। और पाकिस्तान बन गया।
(13)  डॉ . आंबेडकर ने 1935 में स्वंतंत्र वसाहत - SEPARATE SETTLEMENT माँगा था -- तो सम्पूर्ण भारत
         में  गाँधी और उसकी कांग्रेस ने आंबेडकर और अछूतों के खिलाफ ऐसा होहल्ल मचाया, वातावरण बनाया
         की जैसे युद्ध छिड़ गया हो, डॉ . आंबेडकर को जान से मार ने की कोशिश की गई, भारत भर अछूतों के
         मकान जलाये गए, गाँव जलाये गए, खून-खरबा हुआ- ये सब गाँधी और उसके कांग्रेस ने करवाया।
(14) गाँधी और उसकी कांग्रेस ने मुसलमानो को अलग पाकिस्तान हंसी और खुषी से दिया और एक कोरा  चेक
        भी दिया- लेकिन गाँधी और उसकी कांग्रेस ने आंबेडकर और उसके जाती के लोग अछूतों के साथ ऐसा
        दुश्मन जैसा व्यवहार क्यूँ किया ? देखिये पूना पैक्ट।
(15) हिन्दू मुसलमान से डरता है क्यूँ की एक मुसलमान 10 हिन्दुओ के बराबर होता है ऐसा डॉ . आंबेडकर
        अपनी पुस्तक थॉट्स आन पाकिस्तान में लिखते है।
(16) यदि डॉ . आंबेडकर और उसकी जनता अछूत सेना मुसलमान बन कर इस्लाम मजहब कबुल करते, तो
        आज भारत की हालत क्या होती? हिन्दुओ ने कभी सोचा है ?
(17) यदि डॉ . आंबेडकर और उसकी अछूत सेना क्रिस्चियन बनकर ईसाई रिलिजन को अपनाती तो, भारत का
        नक्शा क्या होता? क्या कभी हिन्दुओ ने सोचा है?
(18) गाँधी और उसकी कांग्रेस और हिन्दुओ को याद होगा -- पूना के पास के ' कोरेगांव का युद्ध '. इस युद्ध में
        अछूत- महार सेना ने ' मराठा साम्राज्य ' का विध्वंश- विनाश किया था। डॉ . आंबेडकर जब जीवित थे तो
        हर वर्ष - 1 जानेवारी को कोरेगांव जाकर कोरेगांव के शहीद स्तम्भ के निचे अपना नतमस्तक करके
        प्रणाम करते थे।
 (19)  डॉ . आंबेडकर ने 13 अक्तूबर 1935 से 13-14 अक्तूबर 1956 याने पुरे 20 वर्ष हिन्दुओ को सोचने के लिए
          समय दिया। इस 20 वर्ष के दौरान डॉ , आंबेडकर ने  भारत को एक विश्व - संविधान दिया , जिसमे
          अमेरिका, कनाडा, ब्रिटन, साऊथ अफ्रीका, थाईलैंड और अनेक डेमोक्रेटिक देशो के मानव - अधिकारों के
          मूल अधिकार- विधान है और भारत के शाशित, शोषित, अनाथ, असहाय, दलित, पीड़ित, माइनॉरिटीज
          और वंचित महिलाओ के लिए मूल अधिकार सुरक्षित किये है जिसे 'FUNDAMENTAL RIGHTS'-
         (1) Liberty (2) Equality (3) Justice and (4) Fraternity कहते है।
(20) हिन्दू कोड बिल--  ऐसा बिल  जो भारत की नारी को ' हिन्दू ओ की धर्मशास्त्रों की गुलामी ' से आज़ादी
        दिलाती है --डॉ आंबेडकर ने नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सामने पास करने के लिए रखा तो सभी विरोधी
        हो गए देखकर डॉ आंबेडकर ने अपनी मंत्री पद से त्याग दिया। भारत की नारी के लिए ऐसा महान  त्याग
        आज तक किसी ने किया है? आज के तारीख में ' महिला आरक्षण बिल ' के पक्ष में BJP PARTY या
        कांग्रेस के law Minister ने अपनी मंत्री पद से त्याग नहीं दिया।
(21) विश्व के जितने भी धर्म संस्थापक हुए --जैसे बुद्ध, क्राइस्ट, कृष्ण, मोहम्मद पैगम्बर, नानक आदी इन
        सभी में डॉ आंबेडकर सबसे ज्यादा पढ़े - लिखे थे और उनके पास विश्व के विख्यात युनिवेर्सिटीयोँ की
        डॉक्टरेट की अनेक विषयों में डिग्रियां थी। ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी के मुताबित  डॉ आंबेडकर का दुनियां
        के 100 INTELLECTUALS में TOP ONE और कार्ल मार्क्स का नम्बर तीसरे स्थान पर आता है .
        कार्ल मार्क्स यह धर्म संस्थापक नहीं है क्योंकि कार्ल मार्क्स धर्म को अफु की गोली मानता है।
(22) यदि डॉ आंबेडकर चाहते तो अपना एक नए धर्म की स्थापना कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं
        किया? क्यों ?
(23) महाबोधि सोसायटी, कलकत्ता की मासिक पत्रिका 'महाबोधि ' मई 1950 में डॉ आंबेडकर का एक लेख
        'The Future of Buddha and His Religion' प्रकाशित हुआ था--उसमे लिखा था "संत महात्माओं के
        निर्माण के दिन अब बित चुके हैं और संसार में कोई नया धर्म पैदा होने वाला नहीं है। संसार को प्रचलित
        धर्मों में से ही किसी एक धर्म को चुनना होगा ".  डॉ आंबेडकर ने धर्मं परिवर्तन के पहले ही यह
        भविष्यवाणी की थी। और भी एक दूसरा कारण  है---
(24) और वह कारण यह है की हिन्दुओं के 'ईश्वर अवतारवाद ' को ही समाप्त कर दिया। 'गीता ' के मुताबित
        अब कृष्ण ईश्वर के रूप में दोबारा पैदा नहीं होगा। इस्लाम के मुताबित मोहम्मद पैगम्बर यह आखरी
        पैगम्बर है---अब इस्लाम में भी दूसरा पैगम्बर पैदा नहीं होगा। बाइबल के मुताबित क्राइस्ट यह आखरी
        क्राइस्ट है-- दूसरा क्राइस्ट पैदा नहीं होगा। सिद्धार्थ गौतम बुद्ध भी यह आखरी बुद्ध है-- कोई दूसरा बुद्ध
        पैदा होने वाला नहीं ऐसा डॉ आंबेडकर भविष्यवाणी कर के गए है। 
 (25) डॉ आंबेडकर को  --बुद्ध, क्राइस्ट, मोहम्मद पैगम्बर, कृष्ण, नानक आदि से कम आखना यह विश्व की 
        सबसे बड़ी भूल होगी और इस भूल को एक जघन्य अपराध माना जाएगा।
       
       

Wednesday 8 May 2013

THE OLD BUDDHA (563-483) and THE NEW BUDDHA (1891-1956)


            THE OLD BUDDHA AND THE NEW BUDDHA
                                             सिद्धार्थ गौतम महाकारुणिक बुद्ध ( B.C. 563 -  483 )
                                                                           और
                                             डॉ  भीमराव आंबेडकर महामैत्रैय बुद्ध ( 1891 - 1956 )

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध, जिन्होंने भारत में BC 438 से लेकर BC 483 याने पुरे 45 वर्षो तक भारत भर पैदल घूमकर  प्रज्ञा और करुणा द्वारे प्रचार और प्रसार किया उसे धम्म कहते है। उन्होंने कहा था मेरे धम्म का आधार प्रज्ञा और करूणा है। यही वो कारण है आगे चलकर धम्म का विभाजन हुआ। जिन्होंने करूणा का पक्ष लिया वे हिनयानी या स्थविर वादी कहने लगे। और जिन्होंने प्रज्ञा का पक्ष लिया वे महायानी कहने लगे। और आज तक करूणा बड़ी की प्रज्ञा बड़ी, यह विवाद कोई भी बौद्ध राष्ट्र समाप्त नहीं कर सका।
महाकारुणिक सिद्धार्थ गौतम के प्रचार और प्रसार- आन्दोलन  के कारण ही, उनके जीवन काल में ही आर्यों के अधर्म - (असमानता का धर्म )  चातुर्वर्ण्य ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र ) का सफाया हो गया। इसका सारा श्रेय गौतम बुद्ध को जाता है। यह विश्व की ऐसी पहली  महा क्रांति थी जो बुद्ध के पहले किसी ने नहीं की थी।
यह ऐसी क्रांति थी की भारत में सारा उल्टा -पलटा हो गया और  शुद्र राजा या देश के सत्ताधारी बन गए। और करिश्मा देखो जो ब्राह्मण थे वे भिखारी बन गए। उदहारण के लिए आप वशिष्ट और विश्वामित्र की लड़ाई का मुख्य कारण देख सकते है। वशिष्ट और बुद्ध का संवाद आप पढ़ सकते है। विश्वामित्र की  इस लड़ाई में आखरी जीत हो गई। ऐसी  ही एक जीत अशोक की हुई। ऐसी एक जीत शाश्त्रों की हुई -वेदों की ग्रंथो की हार हुई और बुद्धा के वचन त्रिपिटक और महायान ग्रन्थ बन गए। ब्राह्मण सत्ताधारी और समाज तिलमिला गया। सारी व्यवस्था बिखर गई। ब्राह्मण विद्वानों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। बुद्ध के प्रज्ञा के सामने ब्राह्मण हार गए।
इसी प्रज्ञा में  सम्राट अशोक का जन्म हुआ।
कलिंग देश के राजा और व्यापारी लोगों ने अशोक के जहाजों को रोक के रखा था, जिसके कारण अशोक को कलिंग पर लड़ाई करनी पड़ी और इस युद्ध में जो रक्तपात हुआ वह सारा विश्व जनता है,  और उसके बाद जब ब्राह्मणों ने जो इतिहास लिखा उसमे सम्राट अशोक को चांडाल कहा है। इसी सम्राट अशोक ने ब्राह्मणों की नीव खोद डाली और भारत को बौध्यमय बना दिया। 
कहने का तात्पर्य यह की बुद्ध ने उस समय की सारी सामाजिक व्यवस्था ही बदल दी।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ' बुद्ध एंड हिज धम्म ' ग्रन्थ में लिखते है ---- तथागत ने समजाया :- " संसार में आने का उद्देश्य ही यह है कि दरिद्रो, असहायों और आरक्षितो का मित्र बनना। जो रोगी हों ---श्रमण हों व दुसरे कोई भी हों -- उनकी सेवा करना। दरिद्रों, अनाथो और बूढों की सहायता करना तथा दूसरों को ऐसी करने की प्रेरणा देना।" सम्राट अशोक ने भारत में ही नहीं सम्पूर्ण  विश्व में यह अपना मिशन-कार्य बनाया। और बुद्ध के आठ अस्थियोंको 84 हजार टुकडे सुवर्ण के डब्बियों में बंद करके सम्पूर्ण भारत में ही नहीं, विश्व के दुसरे देशों में भी उसपर स्तूप बनाये और उस स्तूप के आगे एक अशोक स्तम्भ गाढ़ दिया जिसे राजाज्ञाएं कहते हैं।
सम्राट अशोक का grandson सम्राट बृहद्रथ मौर्य की ही हत्या BC 185 में उसके ही  सेनापति पुष्यमित्र ने अपने ही गुरु पतांजलि के कहने पर की थी। उसके बाद बौद्ध राजाओं, भिक्षुओं और बौद्ध लोगोंका जो सरे आम कत्ल हुआ वह इतिहास रक्तों के पन्नों से ऐसा लथपत है जिस की मिसाल विश्व में कंही भी नहीं मिलती, और इस युद्ध में ब्राह्मणों की ऐसी जित हुई की बौद्ध धम्म अपने ही वतन भारत से दुसरे देशों में भाग गया और दो हजार वर्षों तक लौटकर नहीं आया , और  जो लोग बौद्ध थे उनको गुलाम बनाया गया, और इन गुलामों को एक नया नाम दिया गया और वो नाम था  'शुद्र ' और जो बौद्ध लोग लड़ते लड़ते जंगल में भाग गए उन्हें न - छूने का कानून बना दिया, बादमें उन बौद्ध लोगों को एक नया नाम दिया गया ' अछूत '
इस तरह बुद्ध और उसके धम्म का नामोनिशान भारत से मिट गया।
विश्व के दुसरे विकसित और समृद्ध देशों में जो आज बुद्ध धम्म दिखाई दे रहा है, वह उसका असली चेहरा नहीं है, वह उसका नकली चेहरा है, वह उसका विकृत रूप है , वह वंहा दुसरे देशों के नाले में बहकर और गन्दा हो गया है। वंहा भिक्षु शादी करते हैं और वह सब काम-कार्य करते हैं, जिसे बुद्ध ने मना किया है, या जिसे बुद्ध अधर्म कहते हैं। वंहा नैतिकता की कोई कीमत नहीं है। वंहा उन्होंने अनैतिकता को नैतिकता कहा है। हाँ एक बात मानना पड़ेगा की वंहा बुद्ध की बहुत बड़ी-बड़ी मुर्तियोंकों सोने और हीरे-जवारत से सजाया गया हैं।
जापान, कम्बोडिया, थाईलैंड, ताइवान और चीन में आज तक दूसरा बुद्ध क्यों पैदा नहीं हुआ, जो उनकी धरती पर  धर्मचक्र परिवर्तित कर सके। इसके कई कारण है। ( Read Dr. B.R. Ambedkar's Writing and Speeches published by Maharashtra Government, India.)
जो धर्मचक्र परिवर्तित करता है- घुमाता हैं उसे ही बुद्ध कहते हैं।
बोधिसत्व धर्मचक्र परिवर्तित नहीं कर सकता। धर्मचक्र परिवर्तित करने की शक्ति बोधिसत्व में नहीं होती। धर्मचक्र परिवर्तित करने की शक्ति सिर्फ बुद्ध में होती हैं। इसलिए विश्व के बोधिसत्व ने बुद्ध की बराबरी करने का अपराध नहीं करना चाहिए। ऐसा अपराध किया गया है, इसलिए मुझे यह लिखने की आवश्यकता महसूस हुई है। बोधिसत्व देंग्योदाइशी साइच्यो ( जन्म : इ. स. 767 -- निर्वाण : 4 जून 822 ) तेंदाई पंथ के संस्थापक की तुलना डॉ आंबेडकर के साथ कैसे की जा सकती है -- यह तो वह कहावत हो गई ' कंहा  राजा भोज और कंहा  गंगू तेली।' क्या देंग्योदाइशी साइच्यो ने अपने लाखों लोगों के साथ धर्मचक्र परिवर्तन किया है - जैसे डॉ आंबेडकर ने अपने दस लाख लोंगे के साथ धर्मचक्र परिवर्तन किया है ? फिर यह किसकी चाल  है जो डॉ आंबेडकर को नीचा दिखने की कोशिश कर रहा है?
गौतम बुद्ध की तुलना विश्व में सिर्फ डॉ आंबेडकर से की जा सकती है और किसीसे नहीं। या यूँ कहिये डॉ आंबेडकर की तुलना सिर्फ गौतम बुद्ध से की जा सकती है और किसीसे नहीं।
बुद्ध की तुलना बुद्ध से ही की जा सकती है। एक बुद्ध ने अपने पांच भिक्षुओं के साथ  इ.स. पूर्व  438  में धम्म चक्र घुमाया जिसने  करुणा और प्रज्ञा से संपूर्ण विश्व को प्रकाशीत, प्रज्वलित और प्रदीप्त किया। तो दुसरे बुद्ध ने
इ. स. 1956 में अपने दस लाख अनुयायीयों के साथ नागपुर में सधम्मचक्र परिवर्तित किया जिसने भारत के संविधान द्वारा विश्व  में भाईचारा - FRATERNITY का  शंखनाद किया और जिसकी आवाज विश्व की आवाज हो गई है। 
This is the history of OLD BUDDHA.
Now the NEW HISTORY of NEW BUDDHA  starts ------------------------------------------
डॉ आंबेडकर का ' Buddha and FUTURE of HIS DHAMMA ' नामक लेख ' महाबोधि सोसायटी, कलकत्ता ' की मासिक पत्रिका में मई 1950  में प्रकाशित हुआ था। जिसमें लिखा है :- " एक प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक धर्म को देना चाहिए। शोषितों और पैरों तले कुचलों के लिए वह किस तरह की मानसिक और नैतिक राहत पंहुचता हैं? यदि वह ऐसा नहीं कर सकता हो तो उसका अंत ही होगा। क्या हिन्दू धर्म पिछड़ें वर्गों, अछूत जाती  और जन -जातियों के करोंडों लोगों को कोई मानसिक और नैतिक राहत पंहुचता है?  निश्चित नहीं। क्या हिन्दू इन पिछड़े वर्गों, अछूत जाती और जन -जातियों से यह आशा रख सकते हैं कि बगैर किसी मानसिक और नैतिक राहत की उम्मीद किए वे हिन्दू धर्म को चिपके रहेंगे? इस तरह की आशा रखना सर्वथा व्यर्थ होगा। हिन्दू धर्म ज्वालामुखी पर सवार हुआ है। आज यह ज्वालामुखी बुझा हुआ नजर आता है। लेकिन सत्य यह है की यह बुझा हुआ नहीं है। एक बार पिछड़ें वर्ग, अछूत जाती और जन -जातियां का यह करोंड़ों का शक्तिशाली समूह अपने पतन के बारें में सचेत हो जाएगा और यह समझ जाएगा कि अधिकतर हिन्दू धर्म के सामाजिक दर्शन के कारण ही ऐसा हुआ है, तब यह ज्वालामुखी फिर से फट जायेगा। रोमन साम्राज्य में फैले मुर्तिपुजन को  ईसाई धर्म द्वारा बहार फेक दिए जाने की बात यंहा याद आती है। जैसे ही लोंगोंको यह एहसास हुआ कि मुर्तिपुजन से उन्हें किसी तरह की मानसिक और नैतिक राहत मिलनेवाली नहीं है, तो उन्होंने उसका त्याग किया और ईसाई धर्म को अपनाया। जो रोम में हुआ वही भारत में जरुर होगा, हिन्दू लोगों को समझ आनेपर वे निश्चय ही बौद्ध धम्म की ओर ही मुड़ेंगे। " डॉ आंबेडकर की यह चेतावनी और भविश्यवाणी 1956 में सच हुई।
महामैत्रेय आंबेडकर सम्बुद्ध ने इसी उपरोक्त लेख में कहा :- " और यह ध्यान रहे कि यह नया जगत पुराने जगत से सर्वथा भिन्न है।" इसका यह आशय है की गौतम बुद्ध का जगत पुराना है - क्योंकि बुद्ध के ज़माने में सिर्फ चार ही जातियां थी:- (१) ब्राहमण, (२) क्षत्रिय, (३) वैश्य और (४) शुद्र।  और तिन धर्म थे -
(१) आर्य-वेद  धर्म (२) जैन धर्म और (३) बौद्ध धम्म। और ब्राह्मणी - दर्शन के अतिरिक्त कोई बासठ दार्शनिक मत थे और ये सभी ब्राह्मणी - दर्शन के विरोधी थे।
लेकिन डॉ आंबेडकर के ज़माने में चार हजार जातियां है। आर्य-वेद धर्म, जैन धर्म और गौतम बुद्ध के बाद चार  मुख्य धर्म उत्पन्न हुए :- (१) ब्राहमण- मनुस्मृति धर्म, (२) ख्रिश्चन रिलिजन   (३) इस्लाम मजहब और (४) क्यम्युनिजम। और हजारों अनेक अलग अलग पंथ है।
सम्राट अशोक का एक अखंड संपूर्ण बौद्ध भारत का इ.स. पूर्व 185 के बाद 627 राजा और महाराजाओं के  विभिन्न राज्यों में इ.स. 1950 तक  विभाजन हुआ।
ब्रिटिश सम्राट के समक्ष, लंडन के गोलमेज सम्मेलन में अध्यक्ष ने कहा :- " डॉ आंबेडकर, क्या आप इसे संविधान में लिखेंगे ? "( बाबासाहेब डॉ आंबेडकर सम्पूर्ण वाड्मय - खंड 5, पृष्ठ 147 -भारत सरकार प्रकाशन )
खंड 5, पृ ष्ठ 153 पर डॉ आंबेडकर ने कहा :--" -- तब संघीय संविधान कार्यान्वित करने का हमारा उद्देश्य पूरा हो जाता है। यह राजा - महाराजाओं की स्वंतंत्रता के अनुरूप रहेगा कि वे संघ में शामिल होना चाहते हैं या नहीं। "
मेरे कहने का अर्थ है ' भारत का संविधान ' लिखने का अधिकार डॉ आंबेडकर को  ब्रिटिश सरकार और गोलमेज परिषद् के छब्बीसवी बैठक -- 21 सितम्बर 1931 में ही दे दिया था। 
(१) डॉ आंबेडकर ने संघीय संविधान द्वारा भारत को 26 नवम्बर,1950 में सम्राट अशोक को उसका भारत भेंट  कर दिया।
(२) डॉ आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 में  भारत को बौद्धमय करके सिद्धार्थ गौतम बुद्ध को उसका भारत वापस कर दिया।
डॉ आंबेडकर ने यह (१) और (२) प्रमुख कार्य करके भारत को पुनर्जीवित करके, भारत का इ.स. पुर्व का सुवर्ण काल, गौरान्वित काल लोटा दिया।
क्या ऐसा कार्य करने की महान शक्ति किसी भारतीय में थी, है, या रहेगी ?

  
  
              

Saturday 4 May 2013

JAI BHIM

                                                                 जय  भीम 
आज भारत में "जय भीम " कहकर नमस्कार लेने वालों की संख्या कम से कम 5 करोड़ है। जो किसी एक 5 करोड़ वाले स्वंतंत्र देश की कुल लोक संख्या के बराबर है।
भारत में 'जय भीम ' - नमस्कार लेने का चलन डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन में ही उनके सामाजिक आन्दोलन ' महाड  का  पानी का सत्याग्रह ' से शुरू हुआ था।
'POONA PACT ' यदि नहीं होता, तो डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर का " SEPARATE SETTLEMENT " ऐसा एक ' स्वंतंत्र वसाहत ' होता, जो अपने आप में एक स्वंतंत्र देश कहलाता,जिसमे स्वन्तन्त्रपुर्वक रहनेवाले लोग सिर्फ ' जय भीम' कहने वाले होते। लेकिन ' जय भीम ' कहनेवालों का ऐसा दुर्भ्याग्य है जिस पर ' गाँधी  और उसकी कांग्रेस ' ने उनके मुंह का ही निवाला सदा के लिए छीन लिया। निवाला छीन लेने के कारण  आज ' जय भीम ' वाले सत्ता से बेदखल है। सत्ता से बेदखल होने के कारण जय भीम वाले गाँधी और कांग्रेस के गुलाम है। यह एक नए प्रकार की गुलामी हम जय भीम वालों पर थोपी गई है। जिसे हम लोगोंको समजना चाहिए। इसका एक नयी दृष्टी कोण से, नए अंदाज से स्वंतंत्र पूर्वक अभ्यास करना चाहिए। जब तक कांग्रेस जिन्दा रहेगी तब तक जय भीम वाले भारत पर राज नहीं कर सकते। ' भारतीय जनता पार्टी ' भी कांग्रेस का एक कट्टर रूप है जिसे जहाल रूप कहते है - वह कांग्रेस पार्टी से भी महा भयानक रूप है, भारत में बुद्ध और उसके धम्म को बिलकुल बर्दास्त नहीं करती। भारतीय जनता पार्टी का महानायक - श्रीराम है - जिसने शुद्र लोगों के राजा ' शम्भुक ' जो बुद्ध ने बताई ' ध्यान साधना 'कर रहा था, उसका निष्कारण वध किया।
तुम्हारा कोई भी मित्र नहीं है। वेदों के ग्रन्थ तुम्हारे खिलाफ लिखे गये है। पुराण जिनकी संख्या डॉ . भंडारकर के मुताबित कम से कम 222 है, वे सभी ग्रन्थ तुम्हारे खिलाफ लिखे गया है। ' रामायण ' और ' महाभारत ' ये दोनों ग्रंथो की रचना तुम्हारे खिलाफ रची गई है। ' मनुस्मृति ' जो इनका संविधान है वो भी तुम्हारे लोगोंको दण्डित करने के लिए लिखा गया है। आप ये सभी ग्रन्थ पढ़कर देख लीजिये। आप को सत्य और झूठ समाज में आ जायेगा। विश्व के सभी देशों के लोगों ने ये सभी ग्रन्थ पढ़ना चाहिए।
आप और आप की आने वाली संताने ऐसे भारत में फिर कैसे जियेंगे? इसका हल तो आप को ही ढूढना होगा।
हम ' GOOD MORNING ' के बदले हम ' GOOD MORNING ' कहते, लेकिन हम लोग ' जय भीम ' नहीं कहते, और तो और सामने ' GOOD MORNING ' कहने वाला भी हम ' जय भीम ' कहने पर ' जय भीम ' नहीं कहता।
ठीक वैसे ही ' वालेकुम सलाम ' कहने पर हम लोग ' सलाम वालेकुम ' कहते है, पर हम लोग उनको ' जय भीम ' कहने पर वो लोग बदले में ' जय भीम ' नहीं कहते।
ठीक वैसे ही ' जय श्रीराम ',  ' जय कृष्ण  ' , ' राधे राधे ', ' हर हर महादेव ',  और न जाने कितने प्रकार के नमस्कार हम लोग कहते है - लेते है, पर बदले में वे लोग हमें कभी भी ' जय भीम ' नहीं कहते।  ऐसा रवाया इन  लोंगों का क्यों है? क्या इससे भाईचारा पैदा होगा?
आज कल और एक नया चलन पैदा हुआ है। ' जय भीम ' के द्वारा पैदा होनेवाला  ' नमो बुद्धाय ' अब हम से        ' जय भीम ' नहीं लेता और बदले में हमें ' नमो बुद्धाय ' कहने के लिए कहता है। यह कैसी विडंबना है, यह कैसी मानसिकता है। इसे ' ब्राह्मणवादी ' मानसिकता कहते है। हम तुमसे 'श्रेष्ठ' है। क्या विश्व का कोई भी भिक्षु डाक्टर आंबेडकर से बड़ा हो सकता है? हमें इसका उत्तर चाहिए। क्या पिला चीवर- कपड़ा धारण करने से डॉक्टर आंबेडकर से बड़ा हो सकता है। डॉक्टर आंबेडकर ने दस लाख लोगों के साथ जो धर्मचक्र परिवर्तित किया, क्या विश्व का कोई भिक्षु ऐसा कर सकता है। यदि ऐसा नहीं कर सकता तो, वो अपने आप को बड़ा कैसे समजता है। इसे ही बुद्ध ने 'अज्ञान' कहा है। बुद्ध को न जानना को ही अज्ञान कहा गया है। जो धर्मचक्र को परिवर्तित करने की ताकत- क्षमता रखते है उसे ही बुद्ध कहते है। और यह करिश्मा सिर्फ डॉक्टर आंबेडकर ने दो हजार साल के बाद इसी धरती पर करके दिखाया, यह क्या सोचने का विषय नहीं है? यह एक विपक्ष की चाल  है- राजनीती है, जो तुम्हे सोचने से  रोकता है।
यदि तुम लोग डॉक्टर आंबेडकर को ही ' मैत्रय बुद्ध ' कहेंगे, तो भारत बौद्धामय होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। अपने बाप को अपना बाप कहने में क्या शर्मन्दगी है। डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर बोधिसत्व नहीं थे। डॉक्टर आंबेडकर मैत्रेय बुद्धा थे। ' बुद्ध एंड हिज धम्म ' में खुद बाबासाहेब ने कहा है की ' कब धम्म सधम्म होता है  '--    ' जब वह ' करुणा ' और ' प्रज्ञा ' से ऊपर उठकर ' मैत्री ' को धारण करता है। FRATERNITY- भाईचारा - बंधुभाव ही भारत का संविधान है। यह संविधान ही BUDDHISM  है।

Thursday 2 May 2013

ONE CONSTITUTION OF ALL COUNTRIES- FRATERNITY

विश्व के राष्ट्र किस दिशा में जा रहे है और उनके देश के लोगोंको किस दिशा में लेकर जाने का है - क्या इसका
100 साल का मास्टर प्लान Righteous Thought से किसी देश के प्रज्ञावान सांसदो ने बनाया है ? यदि नहीं बनाया तो कब बनाओगे ? यदि बनाया है तो, नया प्रेसिडेंट या नया पंतप्रधान आते ही पुरानी राजनैतिक विचारधारा क्यों बदल दी जाती है ? जिसके कारण लोगोंका मनोबल गिर जाता है और राष्ट्र में अस्थिरता आ जाती है और राजनीती में लोगोंका विश्वास पक्का होने के बजाय, लोग राजनीति को एक मजाक समजकर उसे सिखाने के बजाय उससे अज्ञान रह जाते है।
यदि अपने अपने राष्ट्र को अधिकाधिक मजबूत और लोकशाही के मार्ग में कल्याणकारी, हितकारी और विकासशील बनाना है, तो अपनी अपनी प्रजाकों वे सब मूल अधिकार देने होंगे जिसे कानूनन सुरक्षा देनी होंगी - जिसे स्वतंत्रता, समता, न्याय और भाईचारा कहते है।
यदि यह मूलमंत्र सभी देशोंका होगा तो विश्व में कंही भी युद्ध नहीं होगा और शांति प्रस्थापित करने में सभी का सहयोग प्राप्त होगा।
रही बात धर्म की तो धर्म को दिल में धारण करो। धर्म का बाजार मत लगाओ। धर्मं को मैदान में मत उतारो। धर्मं को रास्तेपे मत उतारो। धर्म लहूलुहान हो जायेगा। फिर कोई भी नहीं बचेगा। न आप बचोगे और न आप का धर्म बचेगा। यदि अपना अपना धर्म बचाना है, तो सबसे उत्तम मार्ग है, अपने अपने धर्म की बाजार में मत बोली लगाओ या उसे मत बेचो, नहीं तो धर्मं का स्वरुप बाजारुपन हो जायेगा। बाजारुपन का अर्थ आप खूब अच्छी तरह से समजते हो, मुझे उसका गहरा अर्थ समजाने की जरुरत नहीं होगी। यदि उस धर्म को यदि वह गहरा बाजारू अर्थ मिल जाता है तो इसके लिए आप वे सभी जिम्मेदार है जो उस धर्म के लोग है। फिर उस बाजारू धर्म का उपयोग वैसा ही किया जाता है जैसे किसी बाजारू औरत का किया जाता है। फिर कैसा रोना धोना, चिल्लाना, शोर मचाना, हंगामा करना और तो और खून खरबा करना। अपने अपने धर्म की इज्जत करना सीखो, अब नहीं सीखोगे तो कब सीखोगे? धर्म ये तुम्हारे दिल के समान है। दिल जैसे तुम्हारे शारीर के अन्दर रहता है, वैसे ही धर्मं को मन के दिल में रखो। धर्म से प्यार करना सीखो। और बात यह है की जिससे तुम्हे प्यार हो जाता है, उसे सरे आम बदनाम नहीं करते। धर्मं यह प्यार करने की चीज है, उसे इतना प्यार करो की तुम धर्म के बनकर रह जाओगे, और फिर धर्म तुम्हारा बनकर रह जायेगा। यही वह राज है धर्म को जानने का. वरना तो बाकि सब धर्मं का ढोल खूब पिट ते रहते है और ज़माने को यह दिखाते रहते हैं की उनके जैसा धर्म को जाननेवाला और दुनिया में दूसरा और कोई नहीं है। ऐसे धर्म के पाखंडी लोगों से आम जनता ने दूर ही रहना चाहिए। और धर्म को बाजारू इन्ही पाखंडी लोगोने बनाया है, इसलिए ऐसे लोगोंसे सावधान रहना चहिये।
दुनिया में आज तक जितने भी युद्ध हुए, वे सभी इन्ही पाखंडी लोगोंके कारण हुए है। और मरनेवाले ये पाखंडी लोग नहीं थे, तो इन पाखंडी लोगो ने उन सभी आदमी, औरत और बचोंको मौत के घाट उतरा  - जिसे आम आदमी कहते है। क्योंकि आम आदमी अज्ञानी होता है, पाखंडी नहीं होता।
आम आदमी पाखंडी नहीं, ज्ञानी होना चाहिए। और ज्ञान का मूल है भाईचारा। भाईचारा में नफ़रत नहीं होती। और जंहा नफ़रत नहीं वंहा युद्ध कैसा?
इसलिए सभी देशों का एक संविधान होना चाहिए, जिसकी बुनियाद सिर्फ और सिर्फ भाईचारा होनी चाहिए।    

Wednesday 17 April 2013

THIS IS NOT BUDDHISM - THIS IS UNIVERSAL TRUTH

                                               
                                                  THIS IS NOT BUDDHISM
                               THIS  IS UNIVERSAL TRUTH

जिस चीज का साक्षात्कार की अनुभूति किसी भी व्यक्ति को विश्व के किसी भी कोने में कि जाती है, उसे BUDDHISM कैसे कह सकते है ? उसे तो UNIVERSAL TRUTH ही कहते है। उसे BUDDHISM  कहने से बाकी धर्म के लोग जैसे HINDUISM , CHRISTIANITY और ISLAM कैसे अपनाएंगे ? कैसा अभ्यास करेंगे?
वे  उस UNIVERSAL TRUTH तक कैसे अनुभव कर सकेंगे ? वे  उस  UNIVERSAL TRUTH का अनुभव नहीं करेंगे तो वे क्या उस UNIVERSAL TRUTH से अनिभिज्ञ - अज्ञान रहेंगे ? और इस महा अपराध के लिए कौन जिम्मेदार होगा ? इस सभी विचारों पर विश्व के  BUDDHIST लोगोने विचार करना चाहिए, तभी इन सवालों का सही सही जवाब मिलेगा और विश्व में  जो  UNIVERSAL TRUTH है उसे विश्व के लोगों को साक्षात्कार - अनुभव करने की प्रेरणा मिलेगी।
UNIVERSAL TRUTH   का कोई पक्ष नहीं है, उसे BUDDHISM का नाम देकर एक पक्षीय मत बनाओ।
विश्व में BUDDHISM एक community के लोग से पहचाने जाते है, यह एक बड़ी विडंबना है, यह एक बड़ी भूल है, जिसके कारण BUDDHISM के प्रचार और प्रसार में बाधा उत्पन्न हो गई है. यदि इस बात को हर बुद्धिस्ट और Ambedkariet  समज सकता है, तो Buddhism के प्रचार और प्रसार करने में बहुत बड़ी स हायता होगी और बाबासाहेब आंबेडकर का भारत को बौद्धामय बनाने का सपना साकार होगा।
Buddhism के पहेले का धर्म जिसे आर्य धर्म  या वेद धर्मं कहा जाता है, उस वेद धर्म ने भारत के लोगों को चार वर्णों में विभाजित किया था। लेकिन भारत में आर्य आने के पहले भारत वर्णों में या जाति में विभाजित नहीं था। भारत को वर्णों में विभाजित करने की राजनीति आर्यों की है और उसके बाद भारत को जाति में विभाजित करने की राजनीति ब्राह्मणों कि मनुस्मृति द्वारा सम्राट अशोक के बाद इसवी सन 185 की है। Buddhism का विनाश होने के ये दो कारण है -- (वर्ण ) और ( जाति ). यदि भारत में वर्ण और जातिया समाप्त कर दी जाये तो, जो बचेगा वह Buddhism होगा. यही भारत का संविधान है, जिसे लोकशाही कहते है।
लोकशाही और कुछ नहीं Buddhism है। और Buddhism universal Truth है। और जिन विश्व के देशो ने इस universal Truth को अपने अपने संविधान द्वारा अपनाया है उसे वे देश Democracy कहते है। भारत में उसे प्रजातंत्र या लोकतंत्र कहते है।
Buddhism को Universal Truth कह सकते हो, लेकिन Universal Truth को Buddhism कहना गलत होगा।

Wednesday 13 February 2013

2014 GENERAL ELECTION - A DREAM OF 80% POPULATION

भारत को  आजाद  हुवे 60 वर्ष हुवे और वह  विश्व का सब से बडा लोकतांत्रिक देश कहलाता है, लेकिन अब तक वह  सही मायने में लोकतंत्र  देश साबित नहीं हो सका। इसके लिए वे सभी पिछली सरकारे जिम्मेदार है जिन्होंने भारत को लोकतान्त्रिक देश बनाने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और  आज भारत देश दिन ब दिन पूंजीवादि यों के हाथो में खिलौना बनकर रह गया है। भारत में 20 प्रतिशत पूंजीवादी शासक लोग 80 प्रतिशत शासित SC, ST and OBC लोगों पर शासन कर रही है। ये उन पिछली सरकारों की सोची समझी साझा राजनीती है जो आम गरीब आदमी के समज के बाहर की बात है, जिनके समझ में आता हैं, वे मूक दर्शक है, हतास है, मजबूर है, उनको  CBI और CID का डर है। उनको अपनी नोकरी जाने का भय है। उनको अपना परिवार खो जाने का भय है। ऐसा मानसिक आतंकवाद पुरे जनमानस के दिल में बैठा है।
भारत देश पूंजीवादी देश बनता जा रहा है। और शायद भारत देश क्यमुनिस्ट देश भी बन सकता हैं।
यदि भारत देश को पूंजीवादी और क्यामुनिस्ट बनाने से रोकना है तो भारत देश पर SC, ST और OBC लोंगोंका शासन आना चाहिए और यही लोग भारत के शासक बनाना चाहिए। इसलिए 2014 के लोकसभा के आम चुनाव में सिर्फ SC, ST और OBC लोंगोंके प्रतिनिधि के रूप में Member of the Parliament- सांसद चुनकर लाना चाहिये। उच्च जाती के लोगोंके के सांसद सिर्फ 20 प्रतिशत होना चाहिये।  तब सही अर्थों में लोकतंत्र में जनता की भागीदारी होगी और यह भारत देश सही मायने में लोकतंत्र की दिशा में अग्रसर होते दिखाई देगा वर्ना भारत देश एक लोकतंत्रिक देश है यह एक सपना बनकर रह जायेगा।