Wednesday 18 January 2012

MANIFESTO OF BHARAT-COMMON PLATFORM

अप्रतिष्ठित  चित्तं 
एक अच्छा हिन्दू, एक अच्छा बौद्ध, एक अच्छा जैन, एक अच्छा क्रिस्टियन, एक अच्छा मुस्लमान, एक अच्छा सिख,  एक अच्छा उद्योगपति और एक अच्छा इन्सान कौन है?
विश्व  की 6  अरब जनसंख्या में से लगभग 5  अरब लोग--हिन्दू धर्मं में  ईश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण, दुर्गा, काली, देवी-देवताओं , हनुमान,  तिरुपति बालाजी, साईं, विट्ठल, नानक, कबीर, साधू- संत-महंत, ओम -सोहम , -- जैन धर्म में  भगवान महावीर,--- बौध्द धम्म में बुध्द, अमिताब बुध्द,---ईसाई रिलिजन में मेरी मदर, जिसस क्राइस्ट, क्रास, ---इस्लाम मजहब में ईदगाह-मस्जिद  पर नमाज, दरगाह पर मिन्नत, हज  --------जप, तप, आराधना, प्रार्थना, पूजा-अर्चना कर्म-कांड, धूप-अगरबती,  फूल, स्नान, इत्यादियों  में लिप्त रहते है.    

यह एक विश्वास है, जो हजारो वर्षो से चला आ रहा है. 
लेकिन यह विश्वास एक विश्वास ही बनकर रह गया. इस विश्वास की ताबीर-तस्वीर -हकीकत में नहीं बदली. 
इसी विश्वास के लोगों  ने --  ईश्वर, खुदा और जीसस  को नहीं देखा, ना सुना, ना उनसे कोई बात की. आज भी  इसी उम्मीद के सहारे वे जीते हैं कि एक दिन उनका विश्वास रंग लायेगा और वे हंसी-ख़ुशी के साथ मृत्यु को गले लगायेंगे. राह ताकते रह गए और इसी उम्मीद के सहारे कई सदियां  गुजर गई, लेकिन बड़े दुःख के साथ, निराश, के साथ वे इस दुनिया से विदा हो गए, विदा हो रहे हैं, विदा होते रहेंगे. लेकिन  भरोसा आज भी कायम है. और इस उम्मीद की कोई दिशा नहीं--जैसे मृगजल.

कितना बड़ा धोका हुआ है, हो रहा है , और होते रहेगा 5  अरब लोगों  के साथ. और वे कौन लोग हैं  जो इसके लिए जिम्मेदार है?  क्या कोई उपाय नहीं है?  कहते है मानव सबसे ज्यादा INTELLECTUAL है . क्या उसकी यही विद्वत्ता है कि वह अपने ही जाल में फंसा है, जिससे उसकी कोई मुक्ति नहीं है?  

विश्व के कितने घंटे जप-तप- प्रार्थना, पूजा- अर्चना  में बर्बाद हो रहे है. और उसके बाद में मानव में कोई परिवर्तन नहीं. मानव जैसा था वैसा ही है, मानव का दूसरे मानव के साथ कोई मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं, कोई सदाचार नहीं. वह कल जैसा था वैसा ही आज भी है. वही कल की नफ़रत, वही कल की दुश्मनी, वही खून-खराबा , वही मारपीट-फिसाद, वही क्रोध, वही लालच, वही दगाबाजी. 

ईश्वर और खुदा की याद में  मानव इन्सान नहीं बन पाया. मानव बाहरी शक्तियों का सिर्फ मन से गुलाम बनकर रह गया है. मानव शरीर से स्वतंत्र हुआ है पर मन से आज भी गुलाम है. यही मानव-जाति  की हजारो वर्ष पुरानी  बेदर्द, दुखभरी कहानी-दास्तान है. इसके लिए कौन जिम्मेदार है?  क्या आदमी एक अच्छा  इन्सान बन पायेगा?  वह कौनसा मार्ग है जो आदमी को एक अच्छा इन्सान बनाता है? इस धरती पर अच्छे इंसानों की कमी क्यों है? क्या धर्मो में कमी है?  या मां-बाप के संस्कार सदाचार नहीं है? कोई तो  कारण होगा ? यह कारण राष्ट्र के या राज्य के दायरे में आता है या दोनों के दायरे में नहीं आता? इस कारण की जिम्मेदारी किसकी है? कितनी भी पंचवार्षिक योजनाये बना लो, कितने ही मंदिर, विहार, चर्च और मस्जिद बना लो, यदि भारत के लोगों को सदाचार बनाने का कारखाना नहीं खोला जाता तो सभी विकास, हित और उससे सम्बंधित कार्य व्यर्थ है.

इस कार्य को अपने मुक्काम तक पहुंचाने के लिए बस एक ही सम्यक उपाय है, और वह है--

भारत के सभी राज्यों के सभी धर्मो के 10 -10 प्रतिनिधियों को  मिलकर एक COMMON PLATFORM बनाया जाये,  जिन प्रतिनिधियों की  संख्या लगभग 500  होना चाहिए.
इस COMMON PLATFORM  पर कोई धर्मंनीती, राजनीति , अर्थनीति, सामाजिकनीति   की चर्चा नहीं होगी.  

इस COMMON PLATFORM पर भारतीय लोगो के मन में  कैसे नफ़रत, क्रोध, लालच के बदले प्रेम, मैत्री, नम्रता, सहिष्णुता, सदाचार, का प्रशिक्षण दिया जाये-- इसके चर्चे भारत भर होना चाहिए और पर्चे भारत भर मे बांटना चाहिए. ये पर्चे स्कुल, कॉलेजेस, सभी केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों को मिलाना चाहिए. यह कार्य तुरंत अंमल में आना चाहिए.  और यह कार्य नियमित रूप से बिना बाधा से, अखंड चलाना चाहिए. 

COMMON PLATFORM राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्य को सफल बनाने के लिए भारत के सिनेमा घरो में और टेलीविजन चैनल पर कम से कम एक वर्ष के लिए कोई भी मारपीट, खूनखराबा, बलात्कार, अत्याचार, अन्याय, चोरी, डकैती, लूटमार आदि दृश्यों पर रोक लगा दी जाये.  अच्छे उद्देश के लिए भारत के सभी संस्थाओं ने अपना-अपना सहकार्य देना चाहिए. यह कोई तानाशाह का आदेश नहीं है. यह तो भारत का लोकतंत्र और मजबूत बनाने का एक और नया- मार्ग है.जिसमे सभी लोकतान्त्रिक नागरिक भारतियों के योगदान की आज के अस्थिर और आतंकवाद के युग में नितांत आवश्यकता है. 

क्योंकि भारत के ही नहीं विश्व के सभी लोग और उनके देश असुरक्षित है. इसलिए भारत देश का यह सबसे प्रथम और महत्वपूर्ण कर्तव्य बनता है कि वह इस सम्यक कार्य के लिए नेतृत्व  करे. भारत का इतिहास गवाह है क़ि दो हजार वर्ष पूर्व सम्राट अशोक ने ऐसा ही नेतृत्व किया था और उनको इस कार्य के लिए सफलता और पहचान मिली थी जिसके कारण भारत का गौरव विश्व में फैला था और भारत ' सोने की चिड़िया ' के नाम से जाना जाता था. इतिहास गवाह है सम्राट अशोक के कार्य-काल में  प़ूरे भारत वर्ष में शांति और भाईचारे का माहौल था.

COMMON PLATFORM और कुछ नहीं सम्राट अशोक का वही पुराना लेकिन नए लोकतान्त्रिक अंदाज में भारत का एक पैगाम है. 

COMMON PLATFORM भारत का MANIFESTO है
COMMON PLATFORM भारत की जीवनशैली है.    
COMMON PLATFORM भारत का अप्रतिष्ठित चित्तं  है. 
अप्रतिष्ठित चित्तं 
एक अच्छा इन्सान बनाने के लिए चित्त को प्रतिष्ठित नहीं करना चाहिए.
चित्त और मन दोनों अलग अलग है.
चित्त में जब (१) वेदना, (२) संज्ञा, (३) संस्कार  और (४) विज्ञान  प्रतिष्ठित होते है तब तक संस्कारित मन, पुराना मन अज्ञान में रहता है, दुख में रहता है और लोगों को भी दुखी करता है. इसलिए भारत के ही नहीं विश्व  के लोग उदासीन और  दुखी है.
लेकिन जब चित्त में (१) वेदना (२) संज्ञा  (३) संस्कार और (४) विज्ञान  प्रतिष्ठित नहीं ( अप्रतिष्ठित चित्तं ) होते तब मानव एक अच्छा इन्सान बनता है. तब उत्पन्न नए मन में करुणा, प्रज्ञा, मैत्री, क्षमा, और शांति  उत्पन्न होती है. फिर यही नया - मन बिना बाधा से जग में मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने लगता है और लोगों को मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने की प्रेरणा देता है. COMMON PLATFORM का यही  तत्वज्ञान,प्रचार और प्रसार है.



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