Wednesday 11 January 2012

JESUS CHRIST LIVED IN INDIA

  जीसस क्राइस्ट का भारत में शूद्रों को सन्देश 
बौध्द सम्राट मौर्य अशोक का जम्बुद्वीप-भारत पर इसवी  सन पूर्व 274  में  जब एकमेव शासन था.  तब उन्होंने अपने राज्याभिषेक के उत्सव पर अपने राजदूतों कों राजपत्रित आमन्त्रण पत्र देकर विश्व के सभी राजा महाराजाओं को आमंत्रित किया था. महास्थविर मोग्गली पुत्ततिस्सा जो सम्राट अशोक के गुरु थे उन्होंने सम्राट अशोक की सहायता से भारत से बहार फारस, यूनान, मिश्र, सीरिया, श्रीलंका, बर्मा आदि देशो में धर्म प्रचार करने के लिए बौध्द भिक्षु भेजे थे. (सदर्भ--ग्लिम्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री)
विश्व  के बहुतांश राजा महाराजायें इस उत्सव में भाग लेने SILK ROAD से भारत में आये थे.
रोम देश के राजकुमार और उनके मंत्री भी आये थे.
इसवी सन पूर्व 44 में रोम सम्राट जुलिअस सीजर की हत्या की गई.
इसवी सन पूर्व 31 में क्लिओपात्रा रोम की Emperor-सम्राज्ञी बनी.
इसवी सन पूर्व 14 में AUGUSTUS रोम के सम्राट का निधन हुआ तब जीसस क्राइस्ट 14 वर्ष के थे. 
यीशु मसीहा का समय सम्राट अशोक के 250 वर्ष बाद का है.
रोम देश में जीसस क्राइस्ट के लोगों पर बहुत अत्याचार, बलात्कार और अन्याय हो रहा था. जब जीसस क्राइस्ट जवान हुए, तब उन्होंने अपने लोगों को संगठित करके एक क्रांति की. नतीजा यह हुआ की जीसस क्राइस्ट को अपने उम्र के 18 वे वर्ष में अपना देश छोड़ना पड़ा. यीशु भागकर यरुशलम शहर से व्यापारियों के साथ भारत के सिंध प्रान्त में आया.   
जीसस क्रिस्ट अपने मित्रों के साथ SILK ROAD से ल्हासा आये थे. जीसस क्राइस्ट ल्हासा, लदाख, तिबेट और नेपाल के हिमालय भागों में 12 वर्ष अभ्यास करते रहे. ईसा ने अपना विद्यार्थी जीवन कश्मीर की बौध्द गुफाओ में बिताया था.  उच्च शिक्षा पाकर जीसस अपने देश लौट आये. तब उनकी उम्र 29 वर्ष की थी. BIBLE में इस 12 वर्ष का जिक्र नहीं है. उम्र के 32  याने तिन  वर्षो तक जो आन्दोलन किया उससे उनके देश में जो विद्रोह हुआ, उस विद्रोह ने संपूर्ण रोम देश में एक परिवर्तन की लहर दौड़ आयी. जीसस के THE SERMON OF MOUNTAIN के प्रवचन ने और उसके बाद के प्रवचन ने THE BIBLE प्रकाशित हुआ. 
ईसा पर राजद्रोही होने का अभियोग चलाया गया था और इस अपराध में ही उसको फंसी मिली थी.
जीसस और उसके मित्रों को A.D. 29 को  CROSS पर लटकाया गया. वह दिन था FRIDAY. दुसरे दिन Saturday को रोम देश का उत्सव था, इसलिए जीसस को और उसके साथियों को वैसे ही सलीब पर छोड़कर सैनिक चले गए. जीसस और उनके साथियों को सलीब से उतारकर वे सभी कब्र की और चले गए. जीसस अभी तक जीवित थे. जब लोग उसकी कब्र पर आकर बड़ी हलचल करने लगे तब न्यायाधीश में उसके बेहोश (मृतक समजकर) शरीर को चुपके से कब्र से अलग दूर कर देना ही उचित समजा. फांसी देने के पूर्व यीशु को  अफीम दी गई थी ताकि वह अचेत रहे और गहरी नींद में सोते रहने से उन्हें कष्ट न हो. यीशु जीवित थे क्योंकि सलीब से उतरने के बाद भी उनके शरीर से खून बह रहा था.  
कुरान दृढ़ता से कहता है की यीशु मसीहा को क्रूस पर मरने से पहले बचा लिया गया.
जीसस के कहने पर उनको भारत लाया गया. 
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु लिखते हैं--" सारे मध्य एशिया में विशेष कर कश्मीर, लद्दाख और तिब्बत में बल्कि उत्तर दिशा से भी आगे यह विश्वास किया जाता है कि यीशु मसीह ने इन स्थानों कि यात्रा की थी.  
जीसस  उम्र के 80 वर्ष में  वे कुषाण राजवंश बौध्द सम्राट कनिष्क के राज्य में थे. कनिष्क शासन काल में गांधार कला और तक्षशिला विश्वविद्यालय ससार भर में प्रसिध्द थे. आपस में के मतभेदों को भुलाने के लिए कनिष्क ने एक बड़ी सभा बुलाई थी वह सभा श्रीनगर से 12 किलोमीटर दूर हरन नमक स्थान में बुलाई गई थी. इस सभा में 1500 बौध्द भिक्षु सम्मलित हुए थे. इसी काल में ललित विस्तार ग्रन्थ लिखा गया था. इस सभा याने तीसरी धम्म संगती का संचालन जीसस क्राइस्ट ने किया था. देखिये --होल्गर कर्स्टन की पुस्तक " Jisas  lived in India"  यीशु मसीह की मृत्यु 120  वर्ष की उम्र में कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के पास खानायारी नामक जगह पर हुई. आज भी यीशु की समाधी (कब्र ) यंहा पर है (सन्दर्भ - नोटोचिव  की पुस्तक)
(नोटोचिव का जन्म 25 अगस्त 1845 को रूस में हुआ था. सन 1887  में वे भारत की यात्रा पर आए थे.)
--- नोटोचिव मुस्लमान था. नोटोचिव लद्दाख की राजधानी लेह में गया और वंहा से हेमिस के प्रसिद्ध बुध्द 
     विहार में गया. वंहा पर उसने पूछा--" जिन धर्म ग्रंथो में यीशु के बारे में लिखा गया है वे कंहा से मिलेंगे?
--- नोटोचिव ने अपनी पुस्तक में लिखा --" यीशु जैन मत के अशुद्ध पुजारियों के पास नहीं रहा और उड़ीसा में 
     जगन्नाथ को चला गया. -----जगन्नाथ, राजगृह, बनारस और दुसरे तीर्थो में 6 वर्ष रहा. ---------
-----यीशु ने ब्राह्मणों की बात नहीं मानी और यीशु  वंहा से शूद्रों की तरफ चले गए. --------------------

     -------यीशु ने शूद्रों से कहा -- मूर्ति मत पूजो क्योंकि मूर्ति सुन नहीं सकती. वेदों को मत सुनो क्योंकि 
                इसमे सचाई नहीं है. गरीबो कि सहायता करो .निर्बल लोगों कि रक्षा करो. किसी का नुकसान मत  
                करो. -----------------------------------------------------------------------------------------------------------.
---यीशु के ऐसे प्रवचन सुनकर शूद्रों में एक संगठित चेतना जाग गई, इसका उलट यह परिणाम हुआ कि उस समय के मठाधिपतियों ने यीशु को जान से मारने कि धमकी दी. शूद्रों ने यीशु को वंहा से गुप्त रूप और मार्ग से हिमालय के लामा लोगों के पास छोड़ दिया. ---- 
( विस्तार के लिए पढ़िए--बरतानिया में बौध्द धर्म--लेखक --बी. आर. सावला )      






















































































































































































No comments:

Post a Comment