विश्व के राष्ट्र किस दिशा में जा रहे है और उनके देश के लोगोंको किस दिशा में लेकर जाने का है - क्या इसका
100 साल का मास्टर प्लान Righteous Thought से किसी देश के प्रज्ञावान सांसदो ने बनाया है ? यदि नहीं बनाया तो कब बनाओगे ? यदि बनाया है तो, नया प्रेसिडेंट या नया पंतप्रधान आते ही पुरानी राजनैतिक विचारधारा क्यों बदल दी जाती है ? जिसके कारण लोगोंका मनोबल गिर जाता है और राष्ट्र में अस्थिरता आ जाती है और राजनीती में लोगोंका विश्वास पक्का होने के बजाय, लोग राजनीति को एक मजाक समजकर उसे सिखाने के बजाय उससे अज्ञान रह जाते है।
यदि अपने अपने राष्ट्र को अधिकाधिक मजबूत और लोकशाही के मार्ग में कल्याणकारी, हितकारी और विकासशील बनाना है, तो अपनी अपनी प्रजाकों वे सब मूल अधिकार देने होंगे जिसे कानूनन सुरक्षा देनी होंगी - जिसे स्वतंत्रता, समता, न्याय और भाईचारा कहते है।
यदि यह मूलमंत्र सभी देशोंका होगा तो विश्व में कंही भी युद्ध नहीं होगा और शांति प्रस्थापित करने में सभी का सहयोग प्राप्त होगा।
रही बात धर्म की तो धर्म को दिल में धारण करो। धर्म का बाजार मत लगाओ। धर्मं को मैदान में मत उतारो। धर्मं को रास्तेपे मत उतारो। धर्म लहूलुहान हो जायेगा। फिर कोई भी नहीं बचेगा। न आप बचोगे और न आप का धर्म बचेगा। यदि अपना अपना धर्म बचाना है, तो सबसे उत्तम मार्ग है, अपने अपने धर्म की बाजार में मत बोली लगाओ या उसे मत बेचो, नहीं तो धर्मं का स्वरुप बाजारुपन हो जायेगा। बाजारुपन का अर्थ आप खूब अच्छी तरह से समजते हो, मुझे उसका गहरा अर्थ समजाने की जरुरत नहीं होगी। यदि उस धर्म को यदि वह गहरा बाजारू अर्थ मिल जाता है तो इसके लिए आप वे सभी जिम्मेदार है जो उस धर्म के लोग है। फिर उस बाजारू धर्म का उपयोग वैसा ही किया जाता है जैसे किसी बाजारू औरत का किया जाता है। फिर कैसा रोना धोना, चिल्लाना, शोर मचाना, हंगामा करना और तो और खून खरबा करना। अपने अपने धर्म की इज्जत करना सीखो, अब नहीं सीखोगे तो कब सीखोगे? धर्म ये तुम्हारे दिल के समान है। दिल जैसे तुम्हारे शारीर के अन्दर रहता है, वैसे ही धर्मं को मन के दिल में रखो। धर्म से प्यार करना सीखो। और बात यह है की जिससे तुम्हे प्यार हो जाता है, उसे सरे आम बदनाम नहीं करते। धर्मं यह प्यार करने की चीज है, उसे इतना प्यार करो की तुम धर्म के बनकर रह जाओगे, और फिर धर्म तुम्हारा बनकर रह जायेगा। यही वह राज है धर्म को जानने का. वरना तो बाकि सब धर्मं का ढोल खूब पिट ते रहते है और ज़माने को यह दिखाते रहते हैं की उनके जैसा धर्म को जाननेवाला और दुनिया में दूसरा और कोई नहीं है। ऐसे धर्म के पाखंडी लोगों से आम जनता ने दूर ही रहना चाहिए। और धर्म को बाजारू इन्ही पाखंडी लोगोने बनाया है, इसलिए ऐसे लोगोंसे सावधान रहना चहिये।
दुनिया में आज तक जितने भी युद्ध हुए, वे सभी इन्ही पाखंडी लोगोंके कारण हुए है। और मरनेवाले ये पाखंडी लोग नहीं थे, तो इन पाखंडी लोगो ने उन सभी आदमी, औरत और बचोंको मौत के घाट उतरा - जिसे आम आदमी कहते है। क्योंकि आम आदमी अज्ञानी होता है, पाखंडी नहीं होता।
आम आदमी पाखंडी नहीं, ज्ञानी होना चाहिए। और ज्ञान का मूल है भाईचारा। भाईचारा में नफ़रत नहीं होती। और जंहा नफ़रत नहीं वंहा युद्ध कैसा?
इसलिए सभी देशों का एक संविधान होना चाहिए, जिसकी बुनियाद सिर्फ और सिर्फ भाईचारा होनी चाहिए।
100 साल का मास्टर प्लान Righteous Thought से किसी देश के प्रज्ञावान सांसदो ने बनाया है ? यदि नहीं बनाया तो कब बनाओगे ? यदि बनाया है तो, नया प्रेसिडेंट या नया पंतप्रधान आते ही पुरानी राजनैतिक विचारधारा क्यों बदल दी जाती है ? जिसके कारण लोगोंका मनोबल गिर जाता है और राष्ट्र में अस्थिरता आ जाती है और राजनीती में लोगोंका विश्वास पक्का होने के बजाय, लोग राजनीति को एक मजाक समजकर उसे सिखाने के बजाय उससे अज्ञान रह जाते है।
यदि अपने अपने राष्ट्र को अधिकाधिक मजबूत और लोकशाही के मार्ग में कल्याणकारी, हितकारी और विकासशील बनाना है, तो अपनी अपनी प्रजाकों वे सब मूल अधिकार देने होंगे जिसे कानूनन सुरक्षा देनी होंगी - जिसे स्वतंत्रता, समता, न्याय और भाईचारा कहते है।
यदि यह मूलमंत्र सभी देशोंका होगा तो विश्व में कंही भी युद्ध नहीं होगा और शांति प्रस्थापित करने में सभी का सहयोग प्राप्त होगा।
रही बात धर्म की तो धर्म को दिल में धारण करो। धर्म का बाजार मत लगाओ। धर्मं को मैदान में मत उतारो। धर्मं को रास्तेपे मत उतारो। धर्म लहूलुहान हो जायेगा। फिर कोई भी नहीं बचेगा। न आप बचोगे और न आप का धर्म बचेगा। यदि अपना अपना धर्म बचाना है, तो सबसे उत्तम मार्ग है, अपने अपने धर्म की बाजार में मत बोली लगाओ या उसे मत बेचो, नहीं तो धर्मं का स्वरुप बाजारुपन हो जायेगा। बाजारुपन का अर्थ आप खूब अच्छी तरह से समजते हो, मुझे उसका गहरा अर्थ समजाने की जरुरत नहीं होगी। यदि उस धर्म को यदि वह गहरा बाजारू अर्थ मिल जाता है तो इसके लिए आप वे सभी जिम्मेदार है जो उस धर्म के लोग है। फिर उस बाजारू धर्म का उपयोग वैसा ही किया जाता है जैसे किसी बाजारू औरत का किया जाता है। फिर कैसा रोना धोना, चिल्लाना, शोर मचाना, हंगामा करना और तो और खून खरबा करना। अपने अपने धर्म की इज्जत करना सीखो, अब नहीं सीखोगे तो कब सीखोगे? धर्म ये तुम्हारे दिल के समान है। दिल जैसे तुम्हारे शारीर के अन्दर रहता है, वैसे ही धर्मं को मन के दिल में रखो। धर्म से प्यार करना सीखो। और बात यह है की जिससे तुम्हे प्यार हो जाता है, उसे सरे आम बदनाम नहीं करते। धर्मं यह प्यार करने की चीज है, उसे इतना प्यार करो की तुम धर्म के बनकर रह जाओगे, और फिर धर्म तुम्हारा बनकर रह जायेगा। यही वह राज है धर्म को जानने का. वरना तो बाकि सब धर्मं का ढोल खूब पिट ते रहते है और ज़माने को यह दिखाते रहते हैं की उनके जैसा धर्म को जाननेवाला और दुनिया में दूसरा और कोई नहीं है। ऐसे धर्म के पाखंडी लोगों से आम जनता ने दूर ही रहना चाहिए। और धर्म को बाजारू इन्ही पाखंडी लोगोने बनाया है, इसलिए ऐसे लोगोंसे सावधान रहना चहिये।
दुनिया में आज तक जितने भी युद्ध हुए, वे सभी इन्ही पाखंडी लोगोंके कारण हुए है। और मरनेवाले ये पाखंडी लोग नहीं थे, तो इन पाखंडी लोगो ने उन सभी आदमी, औरत और बचोंको मौत के घाट उतरा - जिसे आम आदमी कहते है। क्योंकि आम आदमी अज्ञानी होता है, पाखंडी नहीं होता।
आम आदमी पाखंडी नहीं, ज्ञानी होना चाहिए। और ज्ञान का मूल है भाईचारा। भाईचारा में नफ़रत नहीं होती। और जंहा नफ़रत नहीं वंहा युद्ध कैसा?
इसलिए सभी देशों का एक संविधान होना चाहिए, जिसकी बुनियाद सिर्फ और सिर्फ भाईचारा होनी चाहिए।
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